जब चकोर की आँखों मे बस, चँदा की ही आशा थी
जब चातक के जीवन की तो, स्वाती ही परिभाषा थी
जब जब अलि को कलिका मे, इक फूल दिखाई देता था
जब मेघों मे इंद्रधनुस सा, रंग दिखाई देता था
जब साजन की यादों के वो, अश्क सहेजा करती थी
जब पायल मे नूपुर के वो साज संजोया करती थी
ऐसी सुखद कल्पना उसके, नयनों मे जब आती थी
इंतजार मे उसके केवल, सजना की ही पाती थी
🌹ओम अग्रवाल (बबुआ), मुंबई
जब चातक के जीवन की तो, स्वाती ही परिभाषा थी
जब जब अलि को कलिका मे, इक फूल दिखाई देता था
जब मेघों मे इंद्रधनुस सा, रंग दिखाई देता था
जब साजन की यादों के वो, अश्क सहेजा करती थी
जब पायल मे नूपुर के वो साज संजोया करती थी
ऐसी सुखद कल्पना उसके, नयनों मे जब आती थी
इंतजार मे उसके केवल, सजना की ही पाती थी
🌹ओम अग्रवाल (बबुआ), मुंबई
0 comments:
Post a Comment