क्या ये अज़ाब नही"
...."शायर मेहताब"....
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मुझको जिस रात आए तेरा ख्वाब नही,,
फिर जिंदगी की सवेर में आफ़ताब नही...
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बहारें तो आई लेकिन सूनी रही तुम बिन,,
मेरे आँगन में काँटे उग आए गुलाब नही...
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बाकी है हाल-ए-दिल के लिए और सदमे,,
मोहब्बत में अभी भी हाल उतना खराब नही...
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मेरे तो हर्फ़ों ने भी खून बहाया है मेरे वास्ते,,
क़लम चुभती है कागज़ पे क्या ये अज़ाब नही...
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मेरे दोस्त मेरी महफ़िल में नही आते कभी,,
मेहताब यहाँ आँसू है ग़मखोर शराब नही...
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#शायर_मेहताब
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