ढ़लती शाम का इशारा है
पास तुम आ जाओ
कोरे कोरे से मेरे मन पर
तुम बदली बनकर
छा जाओ
सुबह हुई तो ढूंढा तुमको
पर तुम नज़र न आये
चढ़ते दिन की दोपहरी में
मन मेरा तुम्हें बुलाये
तुम आये पल दो पल को
मेरे मन के भावों में
न जाने तुम कहाँ हो साजन
किस बस्ती किन राहों में
देखो मैंने तुम्हें याद कर
ये सोलह श्रृंगार किया
अपनी सारी चाहत को मैंने
बस तुम पर ही वार दिया
मेरे रूप की चाँदनी प्रियतम
तुमको पास बुलाती है
और कहूँ अब क्या तुमसे
लाज से अँखियाँ झुक सी जाती हैं ।
नदी किनारे बाट जोहते
अकेली में यहाँ बैठी हूँ
अपने दिल को दोष में देती
खुद से ही आज रूठी हूँ
शाम ढली अब हुआ अँधेरा
अब तो तुम आ जाओ न
मेरे व्याकुल मन को साथी
इतना भी तरसाओ न ... !!!
अनुभा " अनुपमा "
पास तुम आ जाओ
कोरे कोरे से मेरे मन पर
तुम बदली बनकर
छा जाओ
सुबह हुई तो ढूंढा तुमको
पर तुम नज़र न आये
चढ़ते दिन की दोपहरी में
मन मेरा तुम्हें बुलाये
तुम आये पल दो पल को
मेरे मन के भावों में
न जाने तुम कहाँ हो साजन
किस बस्ती किन राहों में
देखो मैंने तुम्हें याद कर
ये सोलह श्रृंगार किया
अपनी सारी चाहत को मैंने
बस तुम पर ही वार दिया
मेरे रूप की चाँदनी प्रियतम
तुमको पास बुलाती है
और कहूँ अब क्या तुमसे
लाज से अँखियाँ झुक सी जाती हैं ।
नदी किनारे बाट जोहते
अकेली में यहाँ बैठी हूँ
अपने दिल को दोष में देती
खुद से ही आज रूठी हूँ
शाम ढली अब हुआ अँधेरा
अब तो तुम आ जाओ न
मेरे व्याकुल मन को साथी
इतना भी तरसाओ न ... !!!
अनुभा " अनुपमा "
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