हिंदी साहित्य का आधुनिक काल भारत के इतिहास के बदलते हुए स्वरूप से प्रभावित था। स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीयता की भावना का प्रभाव साहित्य में भी आया। भारत में औद्योगीकरण का प्रारंभ होने लगा था। आवागमन के साधनों का विकास हुआ। अंग्रेजी और पाश्चात्य शिक्षा का प्रभाव बढा और जीवन में बदलाव आने लगा।

Tuesday, 31 January 2017

Sagar Shayar

जिसे मिल जाए चरणं धूल
उसे बना देते है परम उसूल
यहीं जीवन है यही सत है
यहीं आपसे हम है फूल
सागर जीवन में आप है
करना न कभी कोई भूल
सागर
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मां शारदे: By Namita Dubey

मां शारदे:::
***
पीली चुनरी पहन धरती
खुशी से इठलाई है
बसंत की रौनक आसमां
तक छायी  है
मां शारदे का आशीश पाने
ये उत्सव आया है
मां शारदे की करो वंदना
मंगल पर्व आया है
सरस्वति मां की कृपा से
लेखन सुन्दर हो जायेगा !
पीली चादर  ,नारंगी फूल
सौन्दर्य अद्भुत धरा है !
भंवरों ने संगीत गाया
माहौल संगीतमय हुआ !
धरती से गगन तक
सौन्दर्य अप्रतिम बिखरा है !
यौवन के भार तले
कली कली मुस्काई है!
ले अगड़ाई कोयल कूहके
वसुन्धरा शर्मायी है!
शीत ऋतु ने बिस्तर बांधा
हंस के मांगी विदाई है !
मधुमास के इस मौसम में
विरहनियां अकुलाईं है !
खेतों में चलें मस्त हवायें
खुश्बू से मदहोश करें !
धानी चुनर पर कर श्रंगार
आभूषणों से हो तैयार
धरती इठलाई है !
आया बसंत हर्षाया तन मन
प्रकृति ने स्वांग रचाया है!
जेठ की तपती दोपहर से पहले
प्यार मन में पनपाया है !
आओ करें नमन मां शारदे को
आशीर्वाद अपना बनाये रखना !
बुद्धी कौशल का सदुपयोग
हित के कार्यों मे लगाये रखना !
नमन मां बारम्बार नमन!!!
नमिता दुबे
****
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Hindi Geet By Namita dubey

पीली चुनर::
***
बसंत आगमन
मनभवन
सौन्दर्य अनुपम
 बदल वस्त्र अपने
धारण की पीली चुनर
हरहराये बसंत
मां शारदे
आशीर्वाद बरसायें !
मन में
मधुमास जगाये
प्रीत की ऋतु सुहानी
विरहनियों की पीड़ा जगाये
कंगन पायल विरह गीत गाये
मां शारदे मन ही मन मुस्काये
सौगातों से झोली भरें
मस्त पवन ठिठोली करे !
आशीर्वाद धरती से नभ
तक बिखरे !
नमिता दुबे
****
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Sachin kumar faizabad Gazal

जय मां शारदे"
मां शारदे के चरणों मे नमन करते हुए आप सभी मित्रों को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें.
🌹🌹🌹🌷🌷🌷🌺🌺?
प्रस्तुत हैं कुछ श्रद्धा सुमन-?💐💐💐🌸🌸🌸🌼🌼🌼
नमन तुमको हमारा है नमन स्वीकार कर दो मां.
रहूं चरणों में मैं हरपल मेरा अधिकार कर दो मां.

रहूं मैं दूर हर तम से हृदय में गूंज भक्ति का,
मुझे तुम अपनी वीणा का वही इक तार कर दो मां.

नहीं हो भूल भूले से अडिग हूं सत्य के पथ पर,
मुझे तुम अपने आंचल मे छिपा संसार कर दो मां.

भरो अब कंठ में स्वर को रचूं इतिहास मैं कोई,
तुम्हारे पांव की पायल की इक झंकार कर लो मां.

तुम्ही माता पिता तुम हो गुरू भी तुम सखा तुम हो,
रहो हरपल मेरे संग में मुझे परिवार कर दो मां.

सदा जिह्वा बिराजो मां रचूं मैं सत्य की वाणी,
मेरे उर में समा के मां मेरा उद्धार कर दो मां.

सदा फूले फले भारत 'सचिन' की है दुआ ये मां,
मेरे भारत के रग रग में प्रगति संचार कर दो मां.

🌹कुमार सचिन🌹
📲 9455008700
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सोहेल खान नवाबी

आपको और आपके पुरे परिवार
को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
😊🙏🏻🌹 सुप्रभात 🌹🙏🏻😊

  सोहेल खान नवाबी
Nsui छात्र नेता बांगड़ कॉलेज पाली
8739933132
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Adab SHAYAR Yunush khan

कहीं दुआ का एक .... लफ्ज़ असर

 कर जाता है.......

कहीं बरसों की इबादत ....... हार

 जाती है........✍

        🌹आदाब जी
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Ashish tiwari

अपने दुखों का हिंसाब लिखो तो
अपने अरमान व ख्वाब लिखो तो
एह़सास भी जिंदा होगा इंसानों में
तुम सांसें लेती किताब लिखो तो


आशीष तिवारी निर्मल
फिल्म सिटी रोड
लुपिन ३०६ मंत्री पार्क
गोरेगांव ईस्ट मुंबई
०८६०२९२९६१६
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मनोज"मोजू" Manoj bhai

जात पात राग द्वेष धर्म मूल भूल फूल ,एकता का देश में खिले तू वो बहार दे

अन्न का भरे भण्डार उन्नति करे व्योपार , ख़त्म मंदी की हो मार ऐसा तू निखार दे

ज्ञान की बहें बयार शिक्षा का भी हो प्रसार , देश में रहे प्यार तू वतन संवार दे

हाथ जोड़ वंदना है ,ये हमारी प्रार्थना है ,ऐसा वर दे तू वरदायिनी माँ शारदे

मनोज"मोजू"
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अमित कुमार रावत प्रधानाचार्य

बसन्तोत्सव की शुभ कामनाओं सहित

सिन्धु है कृपा की मात्र बिन्दु एक माँगता हूँ
साहित्य  उत्थान  हेतु  जावन  का  सारदे,
माना मैं कुपुत्र हूँ कुमातु तू होती ही नहीं
कुमति  विनाश  हेतु  शुभ  संस्कार  दे ।
तू ही देख माता देश कितना दुखी है मेरा
इसके नेताओं का चरित्र को सुधार दे।
शरण में हूँ मैं तेरी वरदे लगा न देरी.
दया की निधान वीणापाणि मातु शारदे।।

✍एड.अमित कुमार रावत प्रधानाचार्य
जय माँ पठा देवी इण्टर कालेज पठा,ललितपुर
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कृष्ण कुमार सैनी"राज"

बसन्त पंचमी पर माँ शारदा के चरणों में एक विनती
🖊📒✒📒🖊📒✒📒
सुर नहीं, साज नहीं , लय नहीं,ताल नहीं ,
छंद और विधा का भी , ज्ञान नहीं मुझको !!

साहित्य की शक्ति भी ,अपार भर दीजिए माँ ,
साहित्य की साधना का , ज्ञान नहीं मुझको !!

🙏🏼🌼🌹🌼🌹🌼🌹🙏🏼
कृष्ण कुमार सैनी"राज"
दौसा,राजस्थान
मोबाइल~97855~23855
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अनवर मिर्ज़ा

 मैं नज़र से पी रहा हूँ .. ये समा बदल न जाए ...
न झुकाओ तुम निगाहें ... कही रात .. ढल न जाए ;
.
मेरे अश्क भी हैं इस में .. ये शराब उबल न जाए...
मेरा जाम छूने वाले .. तेरा हाथ .. जल न जाए ;
.
अभी रात कुछ है बाक़ी .. न उठा नक़ाब साक़ी ....
तेरा रिन्द गिरते गिरते .. कहीं फिर .. संभल न जाए ;
.
मेरी ज़िंदगी के मालिक .. मेरे दिल पे हाथ रखना ...
तेरे आने की खुशी में .. मेरा दम.. निकल न जाए ;
.
मुझे फूंकने से पहले .. मेरा दिल निकाल लेना ...
ये किसी की है अमानत .. कहीं साथ .. जल न जाए..."
.
~~~~~~~ ' अनवर मिर्ज़ापु
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Seemab Akbarabadi Gazal

तेरे क़दमों पे सर होगा क़ज़ा सर पे खड़ी होगी
फिर उस सजदे का क्या कहना अनोखी बंदगी होगी

नसीम-ए-सुबह गुलशन में गुलों से खेलती होगी
किसी की आख़िरी हिचकी किसी की दिल्लगी होगी

दिखा दूँगा सर-ए-महफ़िल बता दूँगा सर-ए-महशर
वो मेरे दिल में होगी और दुनिया देखती होगी

मज़ा आ जायेगा महशर फिर कुछ सुनने सुनाने का
ज़ुबाँ होगीवहाँ मेरी, कहानी आप की होगी

तुम्हें दानिस्ता महफ़िल में जो देखा हो तो मुजरिम हूँ
नज़र आख़िर नज़र है बे-इरादा उठ गई होगी

✏ Seemab Akbarabadi
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Nida Fazli Gazal

बदला न अपने आपको जो थे वही रहे
मिलते रहे सभी से मगर अजनबी रहे

दुनिया न जीत पाओ तो हारो न ख़ुद को तुम
थोड़ी बहुत तो ज़हन में नाराज़गी रहे

अपनी तरह सभी को किसी की तलाश थी
हम जिसके भी क़रीब रहे दूर ही रहे

गुज़रो जो बाग़ से तो दुआ माँगते चलो
जिसमें खिले हैं फूल वो डाली हरी रहे

✏ Nida Fazli
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सरिता सिंघई कोहिनूर तांटक छंद

तांटक छंद
16/14 =30 मात्रा अंत में तीन गुरु
16मात्रा के बाद यति आवश्यक है

बसंत पंचमी की हार्दिक बधाईयाँ

माँ शारद की पूजा करलो,
बसंत पँचमी आई है।
रँग बिरँगे फूल खिले है ,
मंगल खुशियाँ छाई है ।।

सुर वीणा के सुगम ताल से
मंड़ल गुंजित होता है।
सरस्वती मन हारी छवि से
लेखन सुंदर होता है।।

भगवा रँग के फूल खिल गये ,
जुही पलाश कि बेला है।
भँवरों के गुंजन करने का ,
मौसम भी अलबेला है।।

पुलकित होती धरा गगन सब,
बसुंधरा मुस्काई है।
कली कली में यौवन फूटा,
मौसम की अँगड़ाई है।।

शीतल ऋतु ने डेरा बाँधा,
ठंड पड़ी सकुचाई रे।
कंबल और रजाई की अब
करदी साथ विदाई रे।।

प्रेम प्रीत के अंकुर फूटे,
यौवन फिर मदमाया रे।
घर आँगन की रंगोली में
रंग बंसती छाया रे।।

अमुआ में फिर मौर आ गई
कोयल गीत सुनाये रे।
कुहू कुहूँ की तान सुरीली,
मनवा को भरमाये रे।।

विरहनियाँ है प्रीत कि प्यासी,
संग प्रिये मन भाये जी।
आवत देख मीत मन मितवा,
हर्षित जियरा पाये जी।।

बहे सुरों की तान सुरीली,
मीठे ढोल सुहाने रे।
सुगम गीत के बोल सजीले,
सम संगीत लुभाने रे ।।

खेतों में मद मस्त हवायें
अरु पीली  सरसों फूली।
फूल फलों से वृक्षों की सब
शाखायें लदकर झूली ।।

वो गुलाब की क्यारी प्यारी
मुझको पास बुलाती है।
फूलों की भीनी सी खुशबू
अंदर तक महकाती है।।

निर्मल कलकल सरिता बहती,
शांत मधुर सुखदायी है।
मौसम की रानी ने आकर
महकाई पुरवाई है।।


सरिता सिंघई कोहिनूर
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नवल पाल प्रभाकर

बसंत जी।

पैराें में मखमली जूतियां
सिर पर पगड़ी फूलों की
हरियाली रूपी ओढ़ काम्बली
आ गए महंत बसंत जी।
        बयार चले ठंडी होकर
        तन में कंपकंपी बंध जाती
        करती मंत्रमुग्ध हवा
        सांसों में समाई है जाती
उत्तर से आने वाली हवा
ठंड है अधिक बढ़ाती ।
हरियाली रूपी ओढ़ काम्बली
आ गए महंत बसंत जी।
         ऐसी प्यारी ऋतु का
         करते हैं स्वागत जीव-जन्तु
        भरे उमंग में रहते हैं
        थर-थर कांपते हैं तन्तु
रोंए ओर खडे हो जाते
ऐसी ठंड है बढ़ जाती ।
हरियाली रूपी ओढ़ काम्बली
आ गए महंत बसंत जी।
          पत्ते लय-सुर-ताल मिलाते
         थिरक-थिरक नृत्य हैं करते
        भर अंजली बिखेरते पत्ते
        लगते हैं मानो हवा में तैरते
हंसी ठिठोली करते हैं जब
हवा तेज है हो जाती ।
हरियाली रूपी ओढ़ काम्बली
आ गए महंत बसंत जी।
       -ः0ः-
नवल पाल प्रभाकर
मगसम 2622/2016
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sandeep bhai muktak

अम्ब सरस्वती देवि भगवती नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं
ज्ञानदायिनी वीणापाणिनी तु नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं
कलिमलहारिणी पतितपावनी नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं
कमलासने विराजति हि अज्ञानहारिणी  नमस्तुभ्यं 🙏🏼🙏🏼

संदीप 🙏🏼
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Monday, 30 January 2017

युनूस खान पत्रकार Yunus khan

जिन्दगी तो सभी के लिए एक रंगीन

 किताब है ,फर्क बस इतना है की

कोई हर पन्ने को दिल से पड़ रहा है

ओर कोई दिल रखने के लिए पन्ने

 पलट रहा है ........✍📕📖

        🌹 आदाब जी🌹

      🌹युनूस खान पत्रकार 🌹
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आदाब जी Shayri

ठण्डा चूल्हा देखकर रात गुजारी उस

 गरीब ने,

कमबख्त आग थी की पेट में रात भर

 जलती रही ✍

आदाब जी
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कुमार सचिन

तुम्हें शबनम तुम्हे शोख़ी तुम्हें दिलदार करते हैं.
तुम्हारे प्यार का हर पल नया श्रंगार करते हैं.

मुझे तुम कर नहीं सकती कभी भी दूर यूं दिल से,
तुम्हारे दिल की खुशबू से अभी हम. प्यार  करते हैं.

 कुमार सचिन🌹
📲9455008709..... शुभ रात्री मित्रों🙏
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Om Agraval from mumbai

जिसने मुझको रखा कोख मे, जिसने मुझको जाया था
भूखी खुद रह जाती थी पर, मुझको दूध पिलाया था
उस जननी के पदवंदन मे, मै नित शीश झुकाता हूँ
पुण्य धरा की परिपाटी के, अभिनन्दन मै गाता हूँ

मेरा जन्म हुआ तब जिसने, नौबत साज बजाए थे
और तात ने मेरे अरमा, निशिदिन खूब सजाए थे
उसी पिता की पदरज का मै, नित नित तिलक लगाता हूँ
पुण्य धरा की परिपाटी के, अभिनन्दन मै गाता हूँ

जिसने मेरे ज्ञान ध्यान का, सुन्दर सा श्रृंगार किया
जिस गुरुवर ने खुद से ज्यादा, मुझको ही था प्यार किया
ऐसे गुरुवर की छाया मे, सदा स्वयं को पाता हूँ
पुण्य धरा की परिपाटी के, अभिनन्दन मै गाता हूँ

परमपिता परमेश्वर जिसने, सारा खेल रचाया है
जीवन पोषण और मरण सब, एक उसी की माया है
उस प्रभुवर की करूँ वंदना, गीत उसी के गाता हूँ
पुण्य धरा की परिपाटी के, अभिनन्दन मै गाता हूँ

भानु शशी या अम्बर धरती, तरुवर का आभारी हूँ
चल निश्चल या सिंधु अलौकिक, मै तो इक संसारी हूँ
नेह स्नेह की सरिता मे मै, गोते रोज लगाता हूँ
पुण्य धरा की परिपाटी के, अभिनन्दन मै गाता हूँ

प्रिय परिजन परिवार हमारा, मुझको जाँ से प्यारा है
अरि अरु मित्र मुझे प्रिय दोनो, जीवन इन पर वारा है
और आपके श्रीचरणों मे, नमन भोर का गाता हूँ
पुण्य धरा की परिपाटी के, अभिनन्दन मै गाता हूँ

🌹ओम अग्रवाल (बबुआ), मुंबई
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मनोज"मोजू" Manoj kumar moju india

बेच आन बान शान ,भूल इतिहास ज्ञान ,चले तुम बटोरने ,को केवल ताली जी

तुम ने दिया है धोखा , तुम ने भी पा के मौका , जिसमे है खाया खाना , छेद दी वो थाली भी

लगने लगा है ऐसा , दिखे गर तुझे पैसा , अपनी भी बहनों की ,करोगे दलाली जी

सर तेरा फोड़े नहीं , छोड़ दिया थोड़े में ही ,शुक्र मनाओ इसका , तुम तो भंसाली जी

मनोज"मोजू"
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प्रियतम बसंत नवल पाल प्रभाकर

प्रियतम बसंत

पेड़ पत्ते गिराने लगे
पौधे प्रसून दिखाने लगे
सरसों पर पीलिमा छाई
वायुदेव बयार चलाने लगे।
धरती स्वयं सजी-संवरी सी
लगने लगी है सुन्दर कजरी सी
हवा के झोंकों से आभाषित
हल्की-फुल्की अस्थिर चंचल सी
लेकर गोद में लगी खिलाने
नन्ही धूप को ढ़क आंचल से
सरसों पर पीलिमा छाई
वायुदेव बयार चलाने लगे।
हरे-भरे सुन्दर कपड़ों में
रंग-बिरंगे लगे हैं छिंटे
पलकें मुंदे खड़ी आशातित
प्रियतम की राहों में ये
दर्शन देने स्वयं बसंत जी
आये हैं चढ़ कर हाथी पे,
सरसों पर पीलिमा छाई
वायुदेव बयार चलाने लगे।

नवल पाल प्रभाकर
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Naveen LUCKNOW

सुप्रभात जय श्री राधे कृष्ण

बजरंगी  बाला  सुनो,अर्ज  हमारी आप ।
सदा साथ  देना प्रभो,हरना  मन संताप ।।
हरना  मन संताप,गीत प्रभु के हम गायें ।
उर  के मिटे विकार,पाप सारे मिट जायें ।
बने जहाँ के दीप,करें नित बाद उजाला ।
अर्ज  करे  उत्कर्ष,सुनो  बजरंगी  बाला ।

नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
     श्रोत्रिय निवास बयाना
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कवित्री आस्था चौधरी

पत्थर  की  हर  मूरत  मे भगवान  नही  होता,
घर आने वाला हर कोई मेहमान नही होता।
अपनो को अपना कहना आसान बहुत है लेकिन,
अपनो से अपना सा रहना आसान नही होता।।
कवित्री आस्था चौधरी
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Zakir pratapgarhi

Main aaj bhi ye soch ke ro deta huN aksar,,

Tanhaa jo mujhe kar gaya tanha to nahiN hai.
Zakir pratapgarhi
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Abhi Sharma

चल रही थी चल रही है जिन्दगी
अश्क बन कर ढल रही है जिन्दगी

छोड़ के सब जा चुके हैं देखिये
आग सी  बस जल रही है जिन्दगी

क्या कहें अब तो हकीकत है यही
ख्वाब बन कर पल रही है जिन्दगी

बात अब वो है कहां तेरे बिना
यूं समझ लो खल रही है जिन्दगी

साथ अब देता नहीं कोई यहां
आजकल बस छल रही है जिन्दगी


अभि शर्मा "मित्र "
बिलासपुर ,छत्तीसगढ                        
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कुलदीप सिंह नवाब Kuldeep Navab muktak

सूर कबीरा और तुलसी की चौपाई हो जाती है
बच्चन के गीतो के जैसी तरुणाई हो जाती है
शिल्प,व्याकरण,भाव तुम्ही से तुमसे दिल के तार जुड़े
जो तुझमें खोता हूँ पगली कविताई हो जाती है ..!!

कुलदीप सिंह नवाब
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हम ऐसे खोटे सिक्के हैं Mukesh Shukul

क रचना जीव और जीवन को
परिभाषित करती हुई आप सब को सादर समर्पित है :
...........................................

हम ऐसे खोटे सिक्के हैं
कभी चले कभी तो नहीं चले.......।
निर्धन के चूल्हे जैसे है ;
कभी जले कभी तो नही जले .....।।

जीवन इक खेल तमाशा है
कभी आशा कभी निराशा है......।
निर्गुण ,सगुण "अभिन्न ज्योति "
बस एक प्रेम की भाषा है .........।

"झबरी पिलिया" के पिल्ले भी ;
 कभी पले कभी तो नहीं पले ....।।

(हम ऐसे खोटे सिक्के हैं .......,,.)

हरसिंगार की बेल रोज़
फूलों की झडी  लगाती है.......।
घूमती गेंद पर बैठ "चिरैया"
चींव-चींव चिल्लाती  है .........।
"अधखारे पानी" में दालें;
कभी  गलें कभी तो नहीं गलें। ।

( हम ऐसे खोंटे सिक्के हैं...........)

सोंचो उनकी जो बाग़ सजाए
बैठे हैं   बस    गमलों  में ..........।
देखो उनको जो खड़े अडिग ;
अबिचल नित "तम् के हमलों "मे..।

नौसिखियों से मिट्टी के  घड़े ;
कभी ढले  कभी तो नहीं   ढले ...।।

( हम ऐसे खोंटे सिक्के हैं ...,,,,,...)


मुकेश शुक्ल
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Anupama Dikshit Prem Geet

आज लिखती गीत कुछ फिर प्रेम वाले राधिका ।

प्रीत की ये रीत ऐसी जो बना दे साधिका ।

नाम लेकर के अलग उनको नही कोई किया ।

दूर रहकर साथ में दोनों ने ये जीवन जिया।।

 प्रेम में मीरा बनी वो और सब सुख  तज दिया ।

जो ह्रदय में जल उठा था  प्रेम रूपी वो दिया ।

लाख रोके ये जमाना अब नही रुकनी हवा ।

लग चुका ये रोग ऐसा है नहीँ जिसकी दवा ।

रंग पीला उड़ रहा है मौसम बसन्ती हो रहा ।

घूमकर हर फूल पर भंवरा भी सुध बुध खो रहा ।

बाग़ में कलियाँ नयी फिर से रहीं हैं मुसकुरा।

चेहरे की उसके हँसी रंगत रही सबकी चुरा ।

याद करते हो मुझे या भूल बैठे हो पिया ।

घाव दिलपर जो लगे उनको कहो कैसे सिया ।

टूट जो सपने गए कैसे सजायेंगे सजन ।

कांच के टुकड़ों चुभेंगे बिखर जायेंगे सपन ।

अनुपमा दीक्षित मयंक
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Anuraradha kumari Geet

🌷जय माँ शारदे🌷

तुम्हें करती नमन हूं मां मुझे भी प्यार तू दे दे.
मिटे तम जिंदगी के मां नया संचार तू दे दे.।

लड़ूं हर एक मुश्किल से डरूं इक पल नहीं मैं मां,
मुझे आंचल का अपने भी जरा संसार तू दे दे. ।

बसूं हर एक मन में मैंतुम्हारे स्वर की सरिता से,
मेरी वाणी में स्वर सरिता जरा झंकार तू दे दे.।

चलें हम नेक रस्ते पे मुझे मां दे तू ये शक्ति,
तेरी भक्ति विराजे मन वही असआर तू दे दे.।

विराजो आके जिह्वा में तेरा आह्वान करती हूँ,
बहे फिर प्रेम की धारा मुझे पतवार तू दे दे.।


छुए ना अब कोई दुश्मन हमारे सरजमीं को भी,
मेरे अधरों पे हे माता वही तलवार तू दे दे.।

करे मां ये अनू  विनती हमारा देश हो आगे,
हमारे सरजमी को मां गगन का हार तू दे दे..।।

🙏अनुराधा कुमारी🙏
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
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Raj Shukal

                        एक साजिश फिजाओं में चलती रही
लौ बुझाने को आॅधी मचलती रही

ले के आॅखो में एक बेबसी बेसबब
रात को जलना था रात ढलती रही

सर पे रख मौत की आग को रात भर
वो अॅधेरो की किस्मत बदलती रही

भोर तक रोशनी की लहर जा सके
इसलिए मोमबत्ती पिघलती रही

कोई जलता है अपनी बला से जले
ये शमां का धरम था कि जलती रही

ये अलग बात है मुँह से बोली नहीं
आह  दिल से बराबर निकलती रही

दूर करना ही है सारे अन्धेरे को
भावना एक सीने में पलती रही

न चुनौती सही उसने तम की कभी
राज ता उम्र शोले निकलती रही

राज शुक्ल
 मगसम  4149/2016
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माँ तेरी लोरी मुझे महेश गुप्ता जौनपुरी

  माँ तेरी लोरी मुझे
         याद बहुत आती हैं
          तेरी वह दुलार माँ
       मुझे हर पल झकोरती हैं
       ममता की तू छाँव हैं माँ
        तूझसे मेरी पहचान माँ
        माँ याद बहुत आती हो
    मैं तन्हा तन्हा खोया रहता हूँ
            माँ तेरी लोरी मुझे
           याद बहुत आती हैं
          चन्दा मामा अब नहीं
         मुझको दुध पिलाने आते
        अब तो ऑखे भिगती हैं
        तेरे ऑचल को ढुढती हैं
        मैं क्यो सयाना हो गया
     अब गलती मेरी नही छुपती
            माँ तेरी लोरी मुझे
            याद बहुत आती हैं
          अब तो तेरी याद मुझे
             हर पल सताती हैं
          जिम्मेदारी की जीवन में
           तुझको ही मैं ढुढता हूँ
         तूझको पाने के लिए मैं माँ
      फिर से बच्चा बनकर घुमता हूँ

          महेश गुप्ता जौनपुरी
      मोबाइल - 991884564

             मगसम स0 स0
             17003/2016

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🌻राकेश कुमार Rakesh Kumar


⁠⁠⁠⁠YESTERDAY⁠⁠⁠⁠⁠

⁠⁠⁠⁠+91 92528 120339694918577⁠⁠⁠⁠⁠

⁠⁠[6:55 PM, 1/29/2017] +91 92528 12033: ⁠⁠⁠✔ NICE LINE✔ जीवन में हर जगह हम "जीत" चाहते हैं... सिर्फ फूलवाले की दूकान ऐसी है जहाँ हम कहते हैं कि "हार" चाहिए। क्योंकि हम भगवान से "जीत" नहीं सकते। 😊Good Morning 😊
⁠⁠⁠⁠6:55 PM⁠⁠⁠⁠⁠

⁠⁠⁠⁠+91 98263 50513bherulalsoni1951⁠⁠⁠⁠⁠

⁠⁠[7:23 PM, 1/29/2017] +91 98263 50513: ⁠⁠⁠मां शारदे की दुआओ के भाव सारे, मनके हाथो खडं 2हो गये! मंच, माईक जबसे कवि होने के मापदंड हो गये! जब से हुऐ अर्थवादी हमारे खयाल सच कहूं तो, चुटकले भी महाकाव्य खडं हो गये! मोन होकर बेठे मोलिक कवि तब से मठाधिश मंचो के, कविताचोर उद्दडं हो गये
⁠⁠⁠⁠7:23 PM⁠⁠⁠⁠⁠

⁠⁠⁠⁠+91 92707 61885advrakeshkumar mishra29⁠⁠⁠⁠⁠

⁠⁠[7:27 PM, 1/29/2017] +91 92707 61885: ⁠⁠⁠🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁 भगवद गीता अध्याय: 2 श्लोक 21 श्लोक: वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम्‌। कथं स पुरुषः पार्थ कं घातयति हन्ति कम्‌॥ भावार्थ: हे पृथापुत्र अर्जुन! जो पुरुष इस आत्मा को नाशरहित, नित्य, अजन्मा और अव्यय जानता है, वह पुरुष कैसे किसको मरवाता है और कैसे किसको मारता है? ॥21॥ 🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
⁠⁠⁠⁠7:27 PM⁠⁠⁠⁠⁠
⁠⁠[7:37 PM, 1/29/2017] +91 92707 61885: ⁠⁠⁠🌻कब बेईमान हो जाये🌻 क्या खबर ये दिल कब बेईमान हो जाये क्या खबर जुबान कब बदजुबान हो जाये चेहरा तो खूबसूरत है इंसान का पर क्या खबर ये कब शैतान हो जाये मत भूल फलक* तक बादशाहत करने वाले कब तेरा मिटटी में नामों निशान हो जाये ये हवा जो आहिस्ता-आहिस्ता बहती है किस को खबर ये कब तूफान हो जाये उस जवानी की मौत को मौत नही कहते जो जवानी वतन पे "राकेश" कुरबान हो जाये..✍🏻 *आसमान 🌻राकेश कुमार मि
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नरेंद्रपाल जैन। बिन उजड़े ही बसन्त आये

बिन उजड़े ही बसन्त आये
बहार कभी नहीं हो सकता,
इश्क में अश्क नहीं बरसे,
ए यार कभी नहीं हो सकता।

धरती अम्बर चाँद औ सूरज
एक-दूजे को खींचते हैं,
बिन मतलब के रिश्तों का
संसार कभी नहीं हो सकता।

अनदेखे घावोँ से भरा है
मेरी पीठ का हर हिस्सा,
दुश्मन के छूरों से हुए ये
वार कभी नहीं हो सकता।

पाने और खोने की बही में
हिसाब बना है ये जीवन,
व्यापारों-सा लेकिन माँ का
प्यार कभी नहीं हो सकता।

अंकुरित एक बीज हुआ है
जन्म नया ये देखो "नरेन"
मिट्टी का अहसान जड़ों में
भार कभी नहीं हो सकता।

✍🏻 नरेंद्रपाल जैन।
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ममता बनर्जी "मंजरी" Muktak



मुक्तक-
1222 1222 1222 1222
सजाओ मत मुझे साथी,गगन के चाँद तारों से।
मजा मुझको नहीं आता, चमन के गुल बहारों में ।
मुझे लेकर चलो साथी,वतन के शेष  सीमा पर।
करूंगी फूल मैं अर्पण,शहीदों के मजारों पे।।


ममता बनर्जी "मंजरी"
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Sandeef Sharma Gazal

पाओगे जीवन मे बहुत कुछ आप
 सफलताये कोई चुरा नही सकता

हुनर शब्दो को कहने का आपका
 इसको कोई ठुकरा नही  सकता

कोशिशों से सदा रत्न मिले सागर से
इसका असर खाली जा नही सकता

लगेगी किश्ती किनारे पर आपकी
इसे कोई साहिल डुबा नही सकता

हिम्मत को बना लो जीवन का उसुल
फिर आंख से आंसुआ नही सकता

दुआ हे मेरी आबाद रहे आप सब
इससे अच्छी दुआं मे गा नही सकता

मिला प्रेम मुझको आप से अथाह सा
इससे ज्यादा कहीं मै पा नही सकता

संदीप शर्मा ✍🏻🙏🏼
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Irsad Delhvi 2017

जिस  पे  था  ऐतबार  लोगों  का
उसने   लूटा   करार    लोग   का

ऐक  कम अक्ल की हिमाकत से
पिट   गया   कारोबार  लोगों  का

है   गरीबों   से   दुश्मनी   उसको
अब तो यह है विचार  लोगों  का

सच तो यह है कि इस हुकूमत से
उठ    गया    ऐतबार   लोग   का

वह  मुलव्विस है  हर  डकैती  में
जो है  खुद  चौकीदार  लोगों का

खून चूसा  है  किस  लिये  उसने
सिर्फ    ईमानदार    लोगों     का

सब्र  का   इम्तेहां   वह   लेता  है
किस  लिए बार  बार  लोगों  का

उसने  आफ़त  में  डाल  रखा  है
जो है  ख़िदमत गुज़ार  लोग  का

नफ़रतें भी  वह  देख  सकता  है
जिसने देखा है  प्यार  लोगों  का

बे यकीनी है हर तरफ  इरशाद
बंद    है    रोजगार    लोगों   का

✏  इरशाद देहलवी
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Md Hashmat Ali Ansari ब-ज़ाहिर तो रेज़ाकारी करे है बजाय-ए-हक़ तरफ़दारी करे है

ग़ज़ल

ब-ज़ाहिर  तो  रेज़ाकारी करे है
बजाय-ए-हक़ तरफ़दारी करे है

बहर   उन्वान    ऐयारी करे है
मगर  बातें  बड़ी  प्यारी करे है

ज़माना पीरो मुर्शिद कह रहा है
ग़ज़ब की वो  फुसूँकारी करे है

नहीं होती है तकमीले तमस्सुक
मगर फ़रमान तो जारी करे है

समझये अब उसे फ़ासिक़ नहीं जो
मुसलसल नाज़ बरदारी करे है

नहीं कल से भी दुनिया बाख़बर है
मगर बरसों की तैयारी करे है

गदागर कब कोई फ़ितरत से होता
गदाई उसकी लाचारी करे है

बशक्ले सन्खिया है तल्ख़ लेहजा
ज़रा सा भी असर कारी करे है

मसलख़ाँ मैं कहूँ हशमत के शायर
तू बातें तो बहुत सारी करे है

✏ Md Hashmat Ali Ansari
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सरिता सिंघई कोहिनूर

मुक्तक

आकर तेरी बाहों में मैं ऐसे सँवर जाती
बसती तेरी धड़कन में और दिल में उतर जाती
छूती तेरे एहसास के हर पहलू को जाना
तेरे जिस्म की खुशबू को पाकर के निखर जाती

सरिता सिंघई कोहिनूर
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डॉ.यासमीन ख़ान ग़ज़ल' Dr Yasmeen Khan

ग़ज़ल'

मेरे दिल को यूँ जलाया देर तक।
वादा करके भी न आया देर तक।।

वो ग़ज़ब की मय पिलाई आंख से।
ये नशा नीचे न आया देर तक।।

हम लगे उसको खिलौनों की तरह।
खेल का नाटक रचाया देर तक।।

 की बहुत कोशिश रुलाने की हमें।
ज़ब्त हमने भी दिखाया देर तक।।

 करके छलनी तीर से मेरा जिगर।
यास्मीं वो मुस्कुराया देर तक।।
डॉ.यासमीन ख़ान
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अनुभा " अनुपमा " Anupama ढ़लती शाम का इशारा है

ढ़लती शाम का इशारा है
पास तुम आ जाओ
कोरे कोरे से मेरे मन पर
तुम बदली बनकर
छा जाओ
सुबह हुई तो ढूंढा तुमको
पर तुम नज़र न आये
चढ़ते दिन की दोपहरी में
मन  मेरा तुम्हें बुलाये
तुम आये पल दो पल को
मेरे मन के भावों में
न जाने तुम कहाँ हो साजन
किस बस्ती किन राहों में
देखो मैंने तुम्हें याद कर
ये सोलह श्रृंगार किया
अपनी सारी चाहत को मैंने
बस तुम पर ही वार दिया
मेरे रूप की चाँदनी प्रियतम
तुमको पास बुलाती है
और कहूँ अब क्या तुमसे
लाज से अँखियाँ झुक सी जाती हैं ।
नदी किनारे बाट जोहते
अकेली में यहाँ बैठी हूँ
अपने दिल को दोष में देती
खुद से ही आज रूठी हूँ
शाम ढली अब हुआ अँधेरा
अब तो तुम आ जाओ न
मेरे व्याकुल मन को साथी
इतना भी तरसाओ न ... !!!

अनुभा  " अनुपमा "

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मन का दर्द Shankar dada

मन का दर्द
               पीड़ा

अब तक मैंने इस दुनियां में फूल प्यार के बांटे हैं,
मेरे हिस्से में क्यों आये नागफनी के कांटे हैं,।
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
दर्द किसी को दिया नहीं सत्कर्म रहा हूँ मैं करता,
सहता रहा दर्द औरों के कर्म सभी से बांटे हैं ।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐
सफर नहीं आसान जिंदगी टेढ़ा मेढ़ा रस्ता है,
जीवन के इस रंग मंच में कई तरह की हाटें हैं ।
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
सारे रिश्तों को मैंने इक इक करके ही पूजा है,
माता,पिता,बहन,भाई,सुत न्यारे न्यारे छांटे हैं ।
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
सबकी सेवा की है मैंने छोटों को आशीष दिया,
फिर भी इस जीवन में मुझको मिले बहुत सन्नाटे हैं
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
आज सफर के इस दौरां मैं अलग थलग ही रहता हूँ,
फूल बन गये शूल सभी मेरे जीवन के कांटे हैं ।
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
सफर आखिरी आने वाला यही सोच कर मैं चुप हूँ,
स्वयं हलाहस पीकर ही "शंकर" ने ये दिन काटे हैं ।
🙏
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अवधेश कुमार 'अवध' लीला भंसाली की नापाक लीला

लीला भंसाली की नापाक लीला

टूट   रहे  सब  नाते - रिश्ते,
महास्वार्थ  की  आँधी   में l
सम्प्रदाय की छवि दिखती है,
अब  तो  नेहरू, गाँधी   में ll

राम, कृष्ण की बात करें तो,
मज़हबवादी       कहलाते l
सीता, गीता, शारद माँ   पर,
रोज  तंज  कसते    जाते ll

खिलजी भी अब पूजनीय है,
पूजनीय    राक्षस    महिषा l
लीला   भंसाली   की  लीला,
पैसा,   पैसा,   बस     पैसा ll

कभी राम को नाच नचावे,
गाली   देता   सीता   को l
पैसे की खातिर झुठलाता,
रामायण  को, गीता  को ll

रतन  सिंह   की आन - बान,
भंसाली   को  क्यों भायेगी l
पद्मा  की   जौहर ज्वाला भी,
उसको    बहुत   लुभायेगी ll

जिसने  इज्ज़त की   रक्षा  में,
अपना   जीवन   वारा     था l
शासक खिलजी की तुलना में,
जिसको  जौहर   प्यारा  था ll

पद्मावति   की सुन्दरता नहिं,
खिलजियों की  पूँजी    थी l
जौहर व्रत की अग्नि शिखा में,
नारी - गरिमा   गूँजी    थी ll

पद्मा     ने सपना  नहिं  देखा,
खिलजी  को   ही पाने    का l
रतन सिंह से पति को पाकर,
फूले     नहीं   समाने     का ll

अपनी माता - बहनों के भी,
सपनों  में  क्या  आते   हो l
सच बतलाना भंसाली   तुम,
चीर   हरण   करवाते   हो ll

कलयुग में व्यभिचारी खिलजी ,
भंसाली     बनकर      आया l
पद्मा   जैसी   माँ - बहनों   को,
देख    पातकी      ललचाया ll

फिल्मी जग को लाज न आये,
भंसाली   के      सपने    पर l
दादा  फाल्के  के   वारिस को,
पैसा - पैसा      जपने    पर ll

फिल्म बनाने का मतलब क्या,
भारत   माँ    को       बेचोगे l
माता - बहनों की इज्ज़त को,
सरे - आम    तुम    नोचोगे ll

माना  नारी  की  इज्ज़त को,
करने     में    घबराते    हो l
पर  बेइज्ज़त  करने  में   तुम
बोलो  क्या  सुख  पाते  हो ll

सुनो  गौर  से  नारी पर यदि,
मिथ्या   दाग      लगाओगे l
फिर खिलजी की कब्र खुदेगी,
तुम  उसमें  गड़    जाओगे ll

अभी  एक  चाँटा  ही  खाया,
घूसा - लाठी     बाकी    है l
इतने  से  ही   मत   घबराना,
यह  तो  केवल   झाँकी   है ll

इतिहास तुम्हारी फिल्म नहीं,
जो   इससे   तुम     खेलोगे l
सवा  अरब   की आबादी के,
कितने    चाँटे       झेलोगे  ll

अभी समय है हाथ जोड़ गर,
करनी   पर      पछताओगे l
सही गलत को सोच समझकर,
असली   फिल्म   बनाओगे ll

कुछ   अपराध   मिटेगा तेरा,
माँ    फिर     से  दुलरायेगी l
भूला   वापस    आ जाये तो,
खुश हो    गले     लगायेगी ll

अवधेश कुमार 'अवध'
919862744234
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सरिता सिंघई कोहिनूर Sarita Singhai Kohinoor

कत्आत

खेला है दिल से ऐसे मेरे चाहने वाले ने
रौंदा है तमन्नाओं को दिल के करीब लाकर
चाहत कहाँ थी उनको ,हों आरजू हम उनकी
हम ही थे वो मायल पहलू में उनके जाकर

मायल = फ़िदा

सरिता सिंघई कोहिनूर
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रचयिता:बबुआ क्या यही हमारा रस्ता है

क्या यही हमारा रस्ता है
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁


क्या यही हमारी मंजिल थी, क्या यही हमारा रस्ता है
कैसे हम कह पाते हैं कि, दिल मे भारत बसता है
नेह ढूँढते रहते हैं हम, पायल की झँकारों मे
किन्तु कुटिलता भरी हुई है, अपने मौन विचारों मे
संस्कार की बातें यूँ तो, हमको बहुत लुभाती हैं
किन्तु हृदय से अमल करें, क्या बात समझ मे आती है
स्वार्थ परस्ती मे बोलो अब, मानव मूल्य कहाँ बच पाए
मानव तो कहलाते हैं पर, मानवता हम कब रच पाए
नारी के शोषण पर बोलो, क्या आँखें नम होती हैं
भूखे नंगे बच्चों पर क्या, अपनी आँखें रोती हैं
घर के बड़े बुजुर्गों पर भी, हमको तरस नही आता
अग्रज और अनुज का भी तो, हमको चैन नही भाता
और वतन की खातिर बोलो, हमने क्या बलिदान किया
किसकी खातिर हमने बोलो, तन मन धन कुर्बान किया
मान प्रतिष्ठा बल वैभव के, हम तो इतने कायल हैं
मानवता भी कुंठित है फिर, संस्कार भी घायल है
आतंकी परिभाषा को हम, बोलो कब पढ़ पाए हैं
और वतन के नाम पे बोलो, कितने पुष्प चढ़ाए हैं
जर जमीन या सोना चाँदी, कागज के नोट सुहाते हैं
अधिकार सहित ऊँची कुर्सी के, हमको लोभ लुभाते हैं
पैसों के चक्कर मे बोलो, इतने क्यूँ मजबूर हुए
गैरों की तो बात छोड़ दो, हम अपनो से दूर हुए
मन बेचा मनमंथन बेचा, फिर हमने क्या पाया है
सोचो समझो मनन करो क्या, सही मार्ग अपनाया है
आज हमारी करतूतों पर, सारा जग ही हँसता है
क्या यही हमारी मंजिल थी, क्या यही हमारा रस्ता है
बीत गई सो बीत गई अब, पछताने से क्या होगा
रात अंधेरी शमा बुझी है, परवाने से क्या होगा
आओ उठें और हम फिर से, दीपक नया जलाएं
अपना और वतन का वैभव, फिर रौशन कर जाएं

🌹रचयिता:बबुआ
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बेटी के प्रति उच्च सामाजिक मानसिकता बनाने हेतु राम निवास कुमार

🌹बेटा और बेटी🌹
     🙍‍♂         🙍

बेटा यदि वारिस है
तो बेटी पारस है ।

बेटा यदि वंश है
तो बेटी अंश है ।

बेटा यदि तन है
तो बेटी मन है ।

बेटा यदि संस्कार है
तो बेटी संस्कृति है ।

बेटा यदि आन-बान है
तो बेटी मान-गुमान है ।

बेटा यदि दया है
तो बेटी दुआ है ।

बेटा यदि भाग्य है
तो बेटी विधाता है ।

बेटा यदि शब्द है
तो बेटी अर्थ है ।
         
और, बेटा यदि गीत है
तो बेटी संगीत है।

कृपया बेटी के प्रति उच्च सामाजिक मानसिकता बनाने हेतु अधिक-से-अधिक शेयर करने का कष्ट करें ।

निवेदक
निवेदक
   👏राम निवास कुमार

   👏
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Ram Nivas Kumar राम निवास कुमार भ्रूणहत्या के खिलाफ

🌹बेटी का वचन🌹
              🙏
सम्पूर्ण धरा से चुन-चुन कर,
अच्छी चीजें लाऊँगी
पूरी पृथ्वी को बेल कर भी,
रोटी मीठ खिलाऊंगी ।

सीख लूँगी अपने पैरों पर,
खड़ा होना आपसे
नही माँगूंगी  वस्त्र आभूषण,
कह रही हूँ विश्वास से ।

ओ माता ! ओ पिता !
मुझे मत मारो, मुझे मत मारो !

कर समुन्द्र का मंथन भी,
अमृतपान कराऊँंगी
स्वयं भूखी रहकर भी,
भोजन आप जुटाऊँगी ।

तेरे कुल-खानदान की,
लाज मैं बचाऊँगी
वचन मेरा ये लीजिए,
सीता बन साथ निभाऊँगी ।

हानि-मान न होने दूँगी,
इतना समझ लीजिए
निश्चत वचन निभाऊँगी,
पर जीवन दान दीजिए ।

होगा जब सूर्यास्त तुम्हारा,
स्वयं दीपक बन जाऊँंगी
खुद तप सूरज की तरह
 उजियाला फैलाऊँंगी ।

मिले जरूर सत्यवान हमारा,
इतना मान लीजिए
फिर सावित्री बन दिखलाऊँगी,
पर जीवन दान दीजिए ।


राम निवास कुमार
लेखक-सह-कवि
दुर्गापुरी, मालीघाट
मुजफ्फरपुर ।
94 700 27048

कृपया भ्रूणहत्या के खिलाफ मानसिकता  तैयार करने हेतु  इस कविता को अधिक-से-अधिक शेयर करने का कष्ट करें ।🙍
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Kavi Adity Bazrangi


    कवि आदित्य बजरंगी

जय श्री राम जय श्री राम देश बचा गए नाथूराम
गाँधी जैसे पापी को सबक सीखा गए नाथूराम

जाते जाते हिंदुत्व पर एक काम छोड़ गए नाथूराम
गाँधी के साथ नेहरू को क्यों नही मारे नाथूराम
जय श्री राम जय श्री राम देश बचा गए नाथूराम

हिन्दुओ को जिसने मस्ज़िद से निकलवाया था
आज ही के दिन मारे गए वो गाँधी अंधे राम

अहिंसा परमो धर्म का नारा लगाने वाले कायर को
यमलोक पहुचा गए युवाओ के नायक नाथूराम

अय्यासी से भरा बुढ़ापा ऐसे थे वो गाँधी और नेहरू खान
माउन्ट वेटन की पत्नी से अवेध सम्बन्ध रखते नेहरू खान

सत्ता की लाचारी ने देश खण्ड खण्ड कर डाला
गाँधी और जिन्ना ने मिलकर देश धर्म पर बाँट डाला

देश बांटने के बाद भी गाँधी के अनसन ने देश हिला डाला
जमीन दे दी जान दे दी फिर साठ करोड़ भी दे डाला

शहीदों की लाशो पर जो खड़ा क्या स्तम्भ देश का
उस गाँधी ने जिन्ना से मिलकर वो अरमान मिटा डाला

सत सत नमन तुम्हे वीर पुत्र जो देश बचा गए नाथूराम
जय श्री राम जय श्री राम देश बचा गए नाथूराम

   कवि आदित्य बजरंगी
    📞9536198627

डिबाई बुलंदशहर यूपी
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मनोज मस्ताना हास्य कवि 9027168899 Manoj mastana

गहन चिंतन जो तुम प्रेम का कर सको

प्रेम नभ में धरा में समां जाएगा

और कमिटमेंट दो तुम जरा प्रेम का

प्रेम नभ से भी ऊपर छा जाएगा

मनोज मस्ताना हास्य कवि
9027168899
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Md Hashmat Ali Ansari इम्दाद जो न कर सका दिल से दुआ किया

ग़ज़ल
***
इम्दाद  जो न  कर  सका दिल से  दुआ किया
कुछ  इस  तरह भी मैं ने जहाँ का भला किया

दुन्या  के  काम आये न , खौफ-ए-ख़ुदा किया
हशमत अबस जहान में फिर आके क्या किया

राह-ए-वफ़ा   में   हमने   गुज़ारी   है  ज़िन्दगी
वादा   अदू   के  साथ  भी  हमने  वफ़ा किया

आतिशज़नों   जला  के   मकाँ  मुतमइन  हुए
सोचा  कभी  ग़रीब  का  कितना  बुरा किया

छुप छुप  के वार करना  मेरी शख्सियत नहीं
जो  भी  किया  बुरा या भला  बरमला किया

दार-उ-सलीब  से न  कभी  खौफ़  खाये हम
तैग़-उ-तबर  के  साये  में सजदा अदा किया

✏ Md Hashmat Ali Ansari
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Sunday, 29 January 2017

Kavi Nadeem Jagdishpuri

मोहब्बत के वो पल हम सारे ले आते
अगर आप कहते तो चाँद सितारे ले आते

डुबो दिया कश्ती को हमने मझधार में ही
आप हाथ दिखाते तो हम किनारे ले आते

मुरझा गए फूल सारे बगीचे के
आप कहते तो हम बहारें ले आते
  कवि नदीम जगदीशपुरी
   8795124923
www.kavinadeemjagdishpur.blogspot.com
www.twitter.com/nkhan9949
www.linkedin.com/nkhan9949

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Hindi kavi Ankit chakarvarti मांग लेता तुमको मै,उस भाग्य विधाता से..

मांग लेता तुमको मै,उस भाग्य विधाता से..
भगवान को भी मै ढूंढ ढूंढ थक गया।।
सुरमा लगाके ढूंढा,गली गली द्वारे द्वारे..
भाग्य लकीलो मे भी ढूंढ ढूंढ थक गया।।
चुम्बन कर लेता मै,चमकते झुमके का..
बरेली बाजार मे ढूंढ ढूंढ थक गया।।
सोचा शादी करूं किसी,मै देशभक्ति नारी से..
रानी मर्दानी को ढूंढ ढूंढ थक गया।।
�����������
हिन्दी कवि अंकित चक्रवर्ती
8954702290https://youtu.be/NFIyOrzTDtk
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Hindi Kavi Ankit Chakrvarti

एक दो बार नही हमने तो हजारो बार
तुमको हर रणभूमि पर विछाया है।
माफी मांग ली जब तुमने पैरो पर गिर
हमने उठा तुम्हे सीने पर लगाया है।
भारत की एकता को क्यो तुम बिगाड़ रहे
तु भाई नही मेरा कमीन झलहाया है।
दोगुना पीतल भरेगे तुम्हारी खोपडी मे
घाटी मे जितना तुमने खून बहाया है।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
हिन्दी कवि अंकित चक्रवर्ती
8954702290https://youtu.be/NFIyOrzTDtk
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Hindi Kavi Ankit charkvarti 8954702290

नज़रों से नज़रे मिली यह कमाल किसका है।
हम नही मिलते तुमको यह सबाल किसका है।।
तुमने कहा लिया नही किसी से मैने कुछ....
हाथ मे जो तुमने लिया वो रूमाल किसका है।।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
हिन्दी कवि अंकित चक्रवर्ती
8954702290
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