✍🏻पढे लिखों का पीड़ा✍🏻
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आई ए बी ए कर के देखो भागे दिल्ली पूना
बीच सड़क पर बेच रहे पढे लिखे झूनझुना
~
अर्जी लेकर दौड़ रहे है इधर उधर हर दफ्तर
डिग्री लेकर नाच रहे हैं घर से बाहर दर-दर
~
सांझ हुआ घर को जब लौटे पुछे हाल पिताजी
माताजी ढांढस देती खाने को चाट बिछादी
~
दौड़-दौड़ चप्पल घिसी डिग्री की पन्ने अलग हुई
कहीं पैरवी कहीं पे रिश्वत अंत आरक्षण लील गई
~
गली मोहल्ले के बीच मैं बी ए बैल कहाता हूं
प्रतिभा मेरी दफन हूई लोहे की चने चबाता हूं
~
मां बापू ने कैसे-कैसे इतना मुझे पढाया था
दुख दारिद्र्य सहे कितने मुझ पर दाव लगाया था
~
किसे दोष दूं इस गुनाह का डिग्री रद्दी दिखती है
डिग्री भी डिग्री नहीं रही अब बाजार में बिकती है
~
हमने भी कांपी कलमें बक्से में अपने बंद किया
नक्कारों को दी नौकरी तंत्र ने हमसे द्बंद किया
~
मुझे भीख नहीं लेना मिहनत की रोटी खाऐंगे
ये रोग मिटाने के खातिर हम बंद कलम चलाऐंगे
~
उदय शंकर चौधरी नादान
7738559421
जय हिन्द जय भारत
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आई ए बी ए कर के देखो भागे दिल्ली पूना
बीच सड़क पर बेच रहे पढे लिखे झूनझुना
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अर्जी लेकर दौड़ रहे है इधर उधर हर दफ्तर
डिग्री लेकर नाच रहे हैं घर से बाहर दर-दर
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सांझ हुआ घर को जब लौटे पुछे हाल पिताजी
माताजी ढांढस देती खाने को चाट बिछादी
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दौड़-दौड़ चप्पल घिसी डिग्री की पन्ने अलग हुई
कहीं पैरवी कहीं पे रिश्वत अंत आरक्षण लील गई
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गली मोहल्ले के बीच मैं बी ए बैल कहाता हूं
प्रतिभा मेरी दफन हूई लोहे की चने चबाता हूं
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मां बापू ने कैसे-कैसे इतना मुझे पढाया था
दुख दारिद्र्य सहे कितने मुझ पर दाव लगाया था
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किसे दोष दूं इस गुनाह का डिग्री रद्दी दिखती है
डिग्री भी डिग्री नहीं रही अब बाजार में बिकती है
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हमने भी कांपी कलमें बक्से में अपने बंद किया
नक्कारों को दी नौकरी तंत्र ने हमसे द्बंद किया
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मुझे भीख नहीं लेना मिहनत की रोटी खाऐंगे
ये रोग मिटाने के खातिर हम बंद कलम चलाऐंगे
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उदय शंकर चौधरी नादान
7738559421
जय हिन्द जय भारत
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