मित्रों आज के दिन हिन्दुस्तान की इतिहास मे अंग्रेजियों की बर्बरता के लिए अंकित हुआ दिन है । इस हेतु आज के युवाओं को जलियनवाला बाग की दुर्घटना को दृश्यानुभव कराना चाहता हूॅ।😭
जलियनवाला बाग के दोहे
उन्नीस सौ उन्नीस था , दिन तेरह अप्रैल।
हत्याकांड किया डयर,पैशाचिक सा खेल।।
शांति का संदेश लिये, जुटी वहाँ आबाद।
भाषण मे किचलू दिया ,भरे उमंग निनाद।।
परख लिए तूफान को , सोंचे थे उत्पात।
डयर का आदेश लिये ,किये वहाॅ पर पात।।
सेना छोडी गोलियाँ ,बारुद की बौछार।
दानव के हाथों हुआ, मानवता की हार।।
बंद दिवारों मे फँसे, नहि है दूजा द्वार।
सेना पाकर सामने, दौड़ थे नर नार।।
तीतर-बीतर हो रहे, दृश्य देख पाषाण ।
प्राण बचाने मे लगे ,पृथ्वी के संतान।।
समरांगन सा होगया, बिखर गई है शांत।
देख देख ऐसा हुआ , मशान जैसा प्रांत ।।
प्राण धरे सब हाथ मे ,कोई चढे दिवार।
कोई कूदे हैं कुएँ, फिर भी पाये हार।।
होली का वह पर्व नही ,और नही वह फाग।
रक्त तलैया बन पडा,जलियनवाला बाग।।
क्रूर डयर हॅसने लगा, दृश्य देख मैदान।
कुछ पल मे ही कर दिया,पूरा वह शमशान।।
अमर हो गये आम जन,सिधारे दो हजार।
दुख मे भारत माॅ खडी और खडा संसार।।
याद करो उनको सभी , जो गाये थे राग।
आजादी हित मे मरे, जलियनवाला बाग।।
श्रीमन्नारायण चारी"विराट"
जलियनवाला बाग के दोहे
उन्नीस सौ उन्नीस था , दिन तेरह अप्रैल।
हत्याकांड किया डयर,पैशाचिक सा खेल।।
शांति का संदेश लिये, जुटी वहाँ आबाद।
भाषण मे किचलू दिया ,भरे उमंग निनाद।।
परख लिए तूफान को , सोंचे थे उत्पात।
डयर का आदेश लिये ,किये वहाॅ पर पात।।
सेना छोडी गोलियाँ ,बारुद की बौछार।
दानव के हाथों हुआ, मानवता की हार।।
बंद दिवारों मे फँसे, नहि है दूजा द्वार।
सेना पाकर सामने, दौड़ थे नर नार।।
तीतर-बीतर हो रहे, दृश्य देख पाषाण ।
प्राण बचाने मे लगे ,पृथ्वी के संतान।।
समरांगन सा होगया, बिखर गई है शांत।
देख देख ऐसा हुआ , मशान जैसा प्रांत ।।
प्राण धरे सब हाथ मे ,कोई चढे दिवार।
कोई कूदे हैं कुएँ, फिर भी पाये हार।।
होली का वह पर्व नही ,और नही वह फाग।
रक्त तलैया बन पडा,जलियनवाला बाग।।
क्रूर डयर हॅसने लगा, दृश्य देख मैदान।
कुछ पल मे ही कर दिया,पूरा वह शमशान।।
अमर हो गये आम जन,सिधारे दो हजार।
दुख मे भारत माॅ खडी और खडा संसार।।
याद करो उनको सभी , जो गाये थे राग।
आजादी हित मे मरे, जलियनवाला बाग।।
श्रीमन्नारायण चारी"विराट"
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