हिंदी साहित्य का आधुनिक काल भारत के इतिहास के बदलते हुए स्वरूप से प्रभावित था। स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीयता की भावना का प्रभाव साहित्य में भी आया। भारत में औद्योगीकरण का प्रारंभ होने लगा था। आवागमन के साधनों का विकास हुआ। अंग्रेजी और पाश्चात्य शिक्षा का प्रभाव बढा और जीवन में बदलाव आने लगा।

Wednesday, 26 April 2017

अगर लाशे गिरेंगी रोज यूँ छब्बीस बेटों की........

सियासतदार अब ऐसा कोई बाजार डालेंगे।
हमारा हौसला अरमान जिसमें मार डालेंगे।
अगर लाशे गिरेंगी रोज यूँ छब्बीस बेटों की,
तो हम सरकार के शासन का क्या आचार डालेंगे।
#शुभम शुक्ल 
8127089997
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Kavi Nadeem jagdishpuri

तेरी हर बात को हम भुलाएँ कैसे
जख्म गहरे हैं मरहम लगायें कैसे
खामोशियाँ बहुत हैं मगर क्या करें
दिल की बात लाभों से छुपाये कैसे
कातिल अपने ही हैं कोई और नहीं
मरकर हम दोस्तों से बताएं कैसे
राज ये विरानो में खो गया माहिर
अब इससे पर्दा हम उठायें कैसे

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Thursday, 20 April 2017

विद्या भूषण मिश्र "ज़फ़र"

प्रेम गीत..!! ( मात्राएँ१६)

!! आओ अधरामृत पान करें !!
~~~~~~~~~~~~~~~~~~

आया है मदमाता मौसम,
यौवन ने ली अंगड़ाई है ,
तन मन में उठती है हिलोर,
मस्ती सी सब पर छाई है,
आजाओ ऐसे में प्रियतम,
पूरे अपने अरमान करें,
आओ अधरामृत पान करें,
आओ अधरामृत पान करें..!!१!!

खिल गये फूल उपवन-उपवन,
कलियाँ चटकीं डाली डाली ,
पीली पीली सरसों फूली ,
फैली खेतों में हरियाली ,
है मुदित हुआ मन अपना भी,
जगमग अपना खलिहान करें,
आओ अधरामृत पान करें,
आओ अधरामृत पान करें..!!२!!

माथे पर बिंदिया है झिलमिल,
गालों पर मोहक  लाली है ,
सस्मित रक्ताभ अधर दोनों
वक्षों की छटा निराली है।।
सुंदरता की तुम मानक हो,
अब कितना और बखान करें,
आओ अधरामृत पान करें,
आओ अधरामृत पान करें..!!३!!

आगयी निशा महकी महकी,
मन में अनुराग पनपने दो ,
चल रही फागुनी हवा मदिर,
मन को अब और बहकने दो,
तन मन का संगम हो जाये,
मनमोहक नवल विहान करें,
आओ अधरामृत पान करें,
आओ अधरामृत पान करें..!!४!!

----- विद्या भूषण मिश्र "ज़फ़र" -------
             ----२०/०४/१७ -----
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चाँद मुहम्मद "आख़िर"

                       
कभी जो नाज़ करते थे हमारी रहनुमाई पर ।
वही उतरे हैं देखो अब  हमारी ही बुराई पर ।।
हमारी बद अमाली ने हैं "आख़िर" दिन ये दिखलाये ।
हुये मज़बूर हम हैं आज खुद की जग हंसाई पर ।।
       चाँद मुहम्मद "आख़िर"
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राकेश कुमार मिश्रा

🏵🍃दौरे-ए-गजल🍃🏵

मसर्रतों के ख़ज़ाने ही कम
निकलते हैं
किसी भी सीने को खोलो तो ग़म निकलते हैं

हमारे जिस्म के अंदर की झील
सूख गई
इसी लिए तो अब आँसू भी कम निकलते हैं

ये कर्बला की ज़मीं है इसे
सलाम करो
यहाँ ज़मीन से पत्थर भी नम
निकलते हैं

यही है ज़िद तो हथेली पे अपनी
जान लिए
अमीर-ए-शहर से कह दो कि हम निकलते हैं

कहाँ हर एक को मिलते हैं
चाहने वाले
नसीब वालों के गेसू में ख़म
निकलते हैं

जहाँ से हम को गुज़रने में शर्म
आती है
उसी गली से कई मोहतरम
निकलते हैं

तुम्ही बताओ कि मैं खिलखिला
के कैसे हँसूँ
कि रोज़ ख़ाना-ए-दिल से अलम निकलते हैं

तुम्हारे अहद-ए-हुकूमत का सानेहा
ये है
कि अब तो लोग घरों से भी कम निकलते हैं...✍
रचना-मुनव्वर राना
प्रस्तुती
🏵🍃राकेश कुमार मिश्रा🍃🏵
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कवि कमल आग्नेय

कश्मीर के वर्तमान हालातों पर मोदी जी से बात करती हुई कवि कमल आग्नेय की रचना --

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जिनकी बंदूकों से होती नगपति की रखवाली है
उस सेना का थप्पड़ खाना भारत माँ को गाली है
ये केवल इक वार नही है खाकी वर्दी वालों पर
उग्रवाद ने थप्पड़ मारा सवा अरब के गालों पर
वो चाँद सितारे वाले झंडे घाटी में लहराते हैं
और इधर हम सिद्धान्तों से समझौता कर जाते हैं
एक विवशता हमने देखी अबकी पीएम मोदी में
राष्ट्रवाद लाचार पड़ा आतंकवाद की गोदी में
बीजेपी बिन राष्ट्रवाद के खड़ी नही हो सकती है
कोई कुर्सी भारत माँ से बड़ी नही हो सकती है
आग पड़ी ठंडी क्यों एके सैतालिस की नलियों में
भस्मासुर क्यों नाँच रहे हैं शिवशंकर की गलियों में
अमरीका में ट्रम्प खड़ा है और पुतिन है रूस में
मोदी अब क्यों जंग लगी है भारत के कारतूस में
बजंरगी की तरह न भूलो शक्ति नही बिसारो तुम
एक बार भारत माँ के नैनों की ओर निहारो तुम
पर्वत पर कैलाशपति सीमा पर वीर जवान खड़ा
मोदी आप बढ़ो आगे पीछे है हिंदुस्तान खड़ा
आप जीत का झंडा गाड़ो संसद की प्राचीर में
केवल कुछ दिन योगी बाबा को भेजो कश्मीर में
चाँद सितारों की छत पर अब तीन रंग लहराने दो
गोरक्षनाथ के योगीजी को अमरनाथ तक जाने दो
फिर देखो कैसे ये सेना रूप काल का धारेगी
जेहादी गुंडे को घर से खींच खींच कर मारेगी
श्रीनगर के लालचौक पर इंकलाब हो जायेगा
सात दिनों में सत्तर सालों का हिसाब हो जायेगा

(आक्रोश को जिन्दा रखने के लिए लगातार शेयर करते रहें)

                            कवि कमल आग्नेय
                              9129420840
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मंजुलता जैन

इन्तजार में खो गईं आँखे
पथ्थर जैसी हो गईं आँखे

वो घर नही सिर्फ दीवारें हैं
माँ के गम में खो गईंआँखे

दूर तलक़ तक कोई नही है
दामन मेरा भिगो गईं आँखे

मुद्दत हो गई उनसे बिछुड़े हुए
इस सफर में खो गईं आँखे

हाय "लता"ये क्या कर डाला
उनके दिल में उतर गईं आँखे


मंजुलता जैन

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चेतना कौशिक

सुन सखा निराले,कैसे बंधन डाले
मन को बांधें तेरे नैना कंटीले काले
कहाँ मेरा सांवरा,दिल हुआ बाँवरा
देखे राह तेरी बिछा पलक पाँवङा
सुख में भूले कन्हाई,कोई बात नहीं
दुख में यूं दूरी,क्यूं तुम साथ नहीं
निभाओ तुम अपने कर्तव्य और रीत
पर क्या याद नहीं तुम्हें मेरी प्रीत
तुमने लाज रखी मित्र सुदामा की
तुम जी गए लगन गोपी श्यामा की
बंसी बजैया तुम्हें वास्ता बंसी का
सुकून बनो इस रूह छलनी का
रास रचैया,बस अब देर ना करो
वरदानों का हाथ अब आन धरो
यूं ना हो जीते जग के दुख अपार
तेरे दर पे तेरी मीरा जाए हार
देखो गोविंद तुम्हें मेरे प्रेम की आन
व्यर्थ ना जाए कहीं मेरा बलिदान
दर्द पी लूं अगर तू पकङे हाथ
सांस रहने तक रहे तेरा साथ
मैं रहूं ना रहूं,मेरी आस्था बनी रहे
कृष्ण सलोने को कोई छलिया ना कहे

चेतना कौशिक                        
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रामलाल प्रजापति 'रामू'

'दहेज-प्रथा-नारें'

दहेज मत मागों दुखी रहोगे।
दुल्हन बस मागों सुखी रहोगे॥

दहेज मागों सम्मान गमाओ।
दुल्हन मागों सम्मान पाओ॥

सब जन मिल कर अब जुट जाओ।
दहेज-प्रथा को दूर भगाओ॥

जो चला गया सो जाने दो।
अब दहेज को मत आने दो॥

दहेज मत मागो दुल्हन का दिल टूटेगा।
समझदार दूल्हा आखिर क्यो? रूठेगा॥

अंधकार नही अब उजाला लाओ।
दहेज ही दुश्मन है यह सब को बतलाओ॥

पाप नही अब पुण्य कमाओ।
दहेज के प्रति आवाज उठाओ॥

दहेज-प्रथा को दूर भगाओ।
घर-घर में खुशहाली लाओ॥

दुश्मन चाहिए मुझे बताओ।
दहेज रूपी दुश्मन बस छोड़ कर आओ॥

सोच समझ कर करो विचार।
अब नही होने देगे अत्याचार॥

✍रामलाल प्रजापति 'रामू'
          सतना(म.प्र.)
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नरेंद्रपाल जैन

तुम्हें खोने नहीं देगी मेरी ये साँसों की दौलत,
दफन कर दूंगा मैं सारे मेरे अरमानों की दौलत।

मुझे फुर्सत से तुम पढ़ना कहानी मैं किताबों की,
हंसी होंठो पे लाएगी मेरी उन बातों की दौलत।

तुम्हारी ज़िन्दगी महकेगी शक इस पर कभी न हो,
तुम्हें आबाद रखेगी मेरे जज्बातों की दौलत।

ये माना कि मिली तुमको हुस्न औ इश्क की जागीर,
तुम्हारे गम खरीदेगी समर्पित भावों की दौलत।

कभी इन वक्त के पैरों में छाले होंगे यादों के,
तभी नदियां बहायेगी मेरी इन आँखों की  दौलत।

✍🏻 नरेंद्रपाल जैन।
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आदिल फर्रुखाबादी

**********
------------ग़ज़ल-------------

भूली यादों को जगा देते क्यूँ हो
मेरे ज़ख्मों को हवा देते क्यूँ हो

मेरे ख़्वाबों में आकर चले जाते हो
मेरी रातों को सज़ा देते क्यूँ हो

तुम भी रोते हो मेरे लिए छुपकर
अपनी आँखों से बता देते क्यूँ हो

तुम्हे याद है बस एक गलती मेरी
और बातों को भुला देते क्यूँ हो

मेरे मरने की करके आरज़ू 'आदिल'
मुझे जीने की दुआ देते क्यूँ हो

-आदिल फर्रुखाबादी
meet me on facebook. Type- आदिल सरफ़रोश
**********
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Thursday, 13 April 2017

शायर #अनजान 'अश्क़'

असल में थौड़ा मुस्करा लेता हूँ
थौड़ी देर ग़म को भुला लेता हूँ !!
नज़र ख़ुद को जहाँ नहीं आता
ख़ुद को ऐसे कहीं छुपा लेता हूँ !!
होता है दर्दे दिल लाइलाज़ रोग 
लेकिन मैं फ़िर भी दवा लेता हूँ !!
थौड़ी पी लेता हूँ तो हर्ज क्या है
दिल की लगी को भुजा लेता हूँ !!
तुम्हारी तरह बेवफ़ा तो नहीं मैं
ले देके कीमत भी चुका लेता हूँ !!
किसी का एहसान लेता भी क्यों
गिर कर मैं ख़ुद को उठा लेता हूँ !!
शायर #अनजान 'अश्क़'
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एक गीत अक्षय 'अमृत'

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Best Shayari By Kavi Nadeem Jagdishpuri

फर्क नही पड़ता क्या कहोगे तुम मेरे जाने के बाद
मै वैसा ही रहूँगा फिर से वापस आने के बाद
किस किस का मुह बंद करता फिरूं ”नदीम ”
इन्हें कुछ फर्क नही पड़ता मेरे समझाने के बाद
कवि नदीम जगदीशपुरी
8795124923

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Govind Sharma

शहादत पे नही आँसू बहाना हैं,
समय पर देख कदमो को बढ़ाना हैं,
सरबजीत हैं अमर दिल के जहाँ में पर,
किसी कीमत पे कुलभूषण बचाना है।।
#gs
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हिंदी कवि अंकित चक्रवर्ती

जिसने टुकड़े किये हमारी,केशर वाली प्याली के।
जो फूल तोड़कर ले गए थे,मेरी सुन्दर डाली के।
सिंहो की ताकत से अवगत,करवाया हमने उनको।
उनकी छाती पर जा भगवा,दिखलाया हमने उनको।
पकवान जिनको हजम नहीं होते रखे हुए थाली के।
गंगा से सबूत माँग रहे,कीड़े गन्दी नाली के।
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
हिंदी कवि अंकित चक्रवर्ती
8954702290
https://youtu.be/OcW7K60d3Ww
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~~अमितपुरी शिकोहाबादी।

दूर तक़दीर से कुदरत का लिखा कौन करे
बेवफाई का चलन है तो वफ़ा कौन करे।
जी में आता है कि इक रोज़ बुला लूं उसको
उसकी दहलीज़ कहाँ है ये पता कौन करे।
हो अगर ग़ैर से शिकवे तो मिटाएं अपने
ज़ख़्म अपनों ने दिए हों तो दवा कौन करे।
कल जो गुज़रा है मेरे साथ वो फिर गुज़रेगा
बारहां आपसे उम्मीदएवफ़ा कौन करे।
इस बहाने ही सही चेहरा नज़र तो आया
वर्णा मिश्री में नमक है ये कहा कौन करे।
हमने हर बज़्म में तुमको भी किया था शामिल
फिर जो कहते हों अमित उनको मना कौन करे।।।
~~अमितपुरी शिकोहाबादी।
886098985
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Yunush khan

अपनी गलतियों से तक़दीर को

     बदनाम मत करो,

    क्यूंकि तक़दीर तो खुद

हिम्मत की मोहताज होती है ! ✍

        🌹आदाब जी🌹
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New Gazal by Shahbaz

है   दुआ  फिर  कोई  दगा  ना  करे
ज़िन्दगी   को  मेरी  सज़ा  ना  करे

मुश्किल   से   सूखे  हैं   ज़ख्म  मेरे
फिर  से  कोई   इन्हें  हरा  ना  करे

दुआ   ना   मिली   गम   नही  कोई
मेरे   लिए  कोई   बद्दुआ   ना   करे

गर  भूल से  भी मैं  भूला दूँ  उसको
हो    ऐसी    ख़ता,  खुदा   ना  करे

अपने खून से सींचा चमन को  मेने
फिर   कोई   इसे   सहरा  ना   करे

उसकी चुनर पे रंग है मोहब्बत का
कहूँ कैसे बार  बार  धोया  ना करे
शहबाज़
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श्रीमन्नारायण चारी"विराट"

मित्रों आज के दिन हिन्दुस्तान की इतिहास मे अंग्रेजियों की बर्बरता के लिए अंकित हुआ दिन है । इस हेतु आज के युवाओं को जलियनवाला बाग की दुर्घटना को दृश्यानुभव कराना चाहता हूॅ।😭
   जलियनवाला बाग के  दोहे

उन्नीस सौ  उन्नीस था , दिन  तेरह  अप्रैल।
हत्याकांड किया डयर,पैशाचिक सा खेल।।

शांति का  संदेश लिये, जुटी  वहाँ आबाद।
भाषण मे किचलू दिया ,भरे उमंग निनाद।।

परख  लिए तूफान को , सोंचे  थे उत्पात।
डयर का आदेश लिये ,किये वहाॅ पर पात।।

सेना  छोडी  गोलियाँ ,बारुद की  बौछार।
दानव के  हाथों  हुआ, मानवता की  हार।।

बंद  दिवारों  मे  फँसे,  नहि है दूजा द्वार।
सेना  पाकर  सामने,  दौड़ थे   नर नार।।

तीतर-बीतर  हो  रहे, दृश्य देख पाषाण ।
प्राण  बचाने  मे  लगे  ,पृथ्वी  के संतान।।

समरांगन सा होगया, बिखर गई है शांत।
देख देख ऐसा हुआ , मशान  जैसा प्रांत ।।

प्राण धरे  सब हाथ मे ,कोई  चढे  दिवार।
कोई  कूदे हैं  कुएँ,  फिर  भी  पाये  हार।।

होली का वह पर्व नही ,और नही वह फाग।
रक्त तलैया  बन  पडा,जलियनवाला बाग।।

क्रूर डयर  हॅसने  लगा,  दृश्य  देख  मैदान।
कुछ पल मे ही कर दिया,पूरा वह शमशान।।

अमर हो गये आम जन,सिधारे दो हजार।
दुख मे भारत माॅ खडी और खडा संसार।।

याद करो  उनको  सभी , जो  गाये थे राग।
आजादी  हित  मे मरे, जलियनवाला बाग।।

        श्रीमन्नारायण चारी"विराट"
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Wednesday, 5 April 2017

कलाधर छंद

कलाधर छंद

र ज र ज र ज र ज र ज  + गुरु

आदि  से  दिगंत  मे अनंत सूर्य वंश  मे ,
                      सुरम्य राम नाम तो बडा सशक्तिवान है
त्रेत  मे  प्रभा  समाय दिव्य तेज पुंज लै,
                      निहारता कृपानिधे !प्रभू विराज त्राण है
विश्व मे सहिष्णु पाठ को लिये पढाय जो,
                     सु लोकतंत्र का यहाँ सदा सदा प्रमाण है
राम राज्य काज मे सुभाग्यता छिपी रही,
                      चरित्र  साध के सभी करे विराट गान है।।


                        श्रीमन्नारायण चारी"विराट"
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श्रीमन्नारायण चारी"विराट"

मधुशाला छंद-

लेलो रे हर श्याम श्याम अरु,राम नाम का मधु प्याला
जितना रमते हो इस रस मे,उतना  मधुरिम मधुहाला
जो रस  पीते सब धर्मी  यह , मन तरंग उठ लहराता
सुख दुख जीवन पथगामी के,त्राण एक है मधुशाला ।।

               श्रीमन्नारायण चारी"विराट"
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Kavi Devendra Pratap singh best Muktak

भले हों दूरियाँ दिल में मुहब्बत कम नहीँ होती
मगर टूटे हुए दिल की कोई मरहम नहीँ होती
लगा हो दाग दामन में उसे बेदाग कर पाए
किसी की आँख के पानी में इतनी दम नहीँ होती

कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह "आग"
9675426080
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Tuesday, 4 April 2017

--- कवि balaram vyas

सर्वोच्च न्यायालय के एक दुष्ट वकील प्रशांत भूषण द्वारा भगवान 
कृष्ण पर की गयी टिप्पणी पर कवि अमित शर्मा की कविता ज़्यादा  से ज़्यादा शेयर करे----

फिर अपमान हुआ भगवन का, फिर से देश अशांत हुआ ।
पता लगाओ किसके खून से,,,,,,,,, पैदा ये प्रशांत हुआ ???

ये प्रशांत वही तो है, तो काश्मीर पर बोला था ।
घाटी में जनमत करवाओ,, अपना जबड़ा खोला था ।

ये प्रशांत वही तो है, जो अपनी ज़िद पर अड़ा मिला ।
अफजल को फाँसी ना हो, इसलिए कोर्ट में खड़ा मिला ।

ये नही कोई सामाजिक व्यक्ति, ना अधिवक्ता लगता है ।
जिहादी हड्डी पर,,,,,,,, पलने वाला कुत्ता लगता है ।

भक्त यदि गर उबल गए तो,, तुमको ठौर नही होगी ।
कृष्ण जैसी छवि जगत में कोई और नही होगी ।

मेरे कान्हा ने दुनिया में, गीता का ज्ञान बहाया है ।
और शाश्वत प्रेम प्रभु ने हम सबको सिखलाया है ।

मित्र सुदामा के सारे दुःख दूर किए थे कृष्ण ने ।
दो मुट्ठी चावल खाकर दो लोक दिए थे कृष्ण ने ।

माटी में उस दुष्ट कंस को मिला गए थे कान्हा जी ।
सौ सौ ग़लती शिशुपाल की भुला गए थे कान्हा जी ।

लेकिन हद हो जाने पर वो रूप दिखाना पड़ता है ।
सौ गाली के बाद सुदर्शन चक्र उठाना पड़ता है ।

ये अहंकार की कश्ती तुम्हारी, तुम्हें डुबोने वाली है ।
प्रशांत तुम्हारी सौ वी गलती जल्दी होने वाली है ।

उजड़े चमन समझ नही पाया दुनिया के रखवाले को ।
तूने रंगीला बोल दिया,,, प्रशांत बाँसुरी वाले को ।

ये चिंगारी बनी है शोला अबके फटनी निश्चित है ।
अपराध तुम्हारे पूर्ण हुए अब गर्दन कटनी निश्चित है ।

अपराध जघन्य है लेकिन,,,, दुःख प्रभु ही हर सकते है ।
मथुरा जाकर हाथ जोड़ लो कान्हा माफ कर सकते है ।

--- कवि balaram vyas                        
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कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह "आग"

कभी पास मेरे भी आया करो
मुहब्बत के किस्से सुनाया करो
नज़र तिरछी करके न यूँ ताकिये
नज़र से नज़र भी मिलाया करो
डगर अब नयी है फिसल जाओगे
क़दम तुम संभलकर बढ़ाया करो
जवां हुस्न बदनाम हो जाएगा
बदन से न पल्लू हटाया करो
सुलगता हूँ उम्मीद की धूप में
मुझे छाँव में तुम बिठाया करो
सजल नीर में आग लग जाएगी
ये पूरा बदन मत डुबाया करो
महक तुमसे गुलशन न माँगे सुनो
बदन को न ज्यादा सजाया करो
हैं दीवाने जो आपके प्यार में
उन्हें उंगली पर मत नचाया करो
अकेला हूँ दामन मेरा थाम लो
समय है सुनहरा न जाया करो

कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह "आग"
9675426080
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फिर अपमान हुआ भगवन का, फिर से देश अशांत हुआ ।

फिर अपमान हुआ भगवन का, फिर से देश अशांत हुआ ।
पता लगाओ किसके खून से,,,,,,,,, पैदा ये प्रशांत हुआ ???

ये प्रशांत वही तो है, तो काश्मीर पर बोला था ।
घाटी में जनमत करवाओ,, अपना जबड़ा खोला था ।

ये प्रशांत वही तो है, जो अपनी ज़िद पर अड़ा मिला ।
अफजल को फाँसी ना हो, इसलिए कोर्ट में खड़ा मिला ।

ये नही कोई सामाजिक व्यक्ति, ना अधिवक्ता लगता है ।
जिहादी हड्डी पर,,,,,,,, पलने वाला कुत्ता लगता है ।

भक्त यदि गर उबल गए तो,, तुमको ठौर नही होगी ।
कृष्ण जैसी छवि जगत में कोई और नही होगी ।

मेरे कान्हा ने दुनिया में, गीता का ज्ञान बहाया है ।
और शाश्वत प्रेम प्रभु ने हम सबको सिखलाया है ।

मित्र सुदामा के सारे दुःख दूर किए थे कृष्ण ने ।
दो मुट्ठी चावल खाकर दो लोक दिए थे कृष्ण ने ।

माटी में उस दुष्ट कंस को मिला गए थे कान्हा जी ।
सौ सौ ग़लती शिशुपाल की भुला गए थे कान्हा जी ।

लेकिन हद हो जाने पर वो रूप दिखाना पड़ता है ।
सौ गाली के बाद सुदर्शन चक्र उठाना पड़ता है ।

ये अहंकार की कश्ती तुम्हारी, तुम्हें डुबोने वाली है ।
प्रशांत तुम्हारी सौ वी गलती जल्दी होने वाली है ।

उजड़े चमन समझ नही पाया दुनिया के रखवाले को ।
तूने रंगीला बोल दिया,,, प्रशांत ,  बाँसुरी वाले को ।

ये चिंगारी बनी है शोला ,अबके फटनी निश्चित है ।
अपराध तुम्हारे पूर्ण हुए अब गर्दन कटनी निश्चित है ।

अपराध जघन्य है लेकिन,,,, दुःख प्रभु ही हर सकते है ।
मथुरा जाकर हाथ जोड़ लो कान्हा माफ कर सकते है ।
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#मेहताब_पदमपुरी

वो हँसकर दर्द को छुपा रहा है,,
जिंदगी बिना शिकवे के बिता रहा है...
उसको अपनों ने छोड़ दिया है,,
वो आईने को गले लगा रहा है...
वो जो आहों का गीत गा रहा है,,
अपने महबूब को बुला रहा है...
रोते हुए को चुप मत कराओ,,
वो पानी से आग बुझा रहा है...
सारी रात जागकर क्यूँ गुजारे,,
उसे कोई ख्वाब सता रहा है...
वो है तो शायर मगर मेहताब,,
अपनी कहानी ही मिटा रहा है...
#मेहताब_पदमपुरी
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Kavi Nadeem Jagdishpuri Best Gazal Of 2017

 गजल
कुछ ना बताने का मतलब क्या है

नजरों को झुकाने का मतलब क्या है

पूछा जो हमने राज बताआगे कब,

तुम्हारे मुस्कराने का मतलब क्या है

मोहब्बत नहीं है हमसे तो इशारे क्यों,

यूँ ख्वाबों में आने का मतलब क्या है।

तुम हमारे नहीं हम भी समझते हैं

फिर रोज सताने का मतलब क्या है


सो नहीं पाता मै अब तो सनम

यूँ रात भर जगाने का मतलब क्या है
 कवि नदीम जगदीशपुरी

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