🌺अपनी कलम से ✍
महके मुझे तेरी आँचल
पता चल जाये तेरी छागल
कब तू दुर रहे मुझसे
याद दिलाती तेरी आँचल ।
कभी रातों का नशा ,
कभी दिन मे वफा,
तू चली कब आये ,
ये न कभी मुझको पता ,
जहाँ रहूँ वहाँ पे हूँ मै पागल ।
करती निगाहें तेरी हर बार मुझे घायल ।
कही तू हो मेरे पास
महके मुझे तेरी आंचल ।
प्रशान्त दीक्षित
सीखने योग्य
महके मुझे तेरी आँचल
पता चल जाये तेरी छागल
कब तू दुर रहे मुझसे
याद दिलाती तेरी आँचल ।
कभी रातों का नशा ,
कभी दिन मे वफा,
तू चली कब आये ,
ये न कभी मुझको पता ,
जहाँ रहूँ वहाँ पे हूँ मै पागल ।
करती निगाहें तेरी हर बार मुझे घायल ।
कही तू हो मेरे पास
महके मुझे तेरी आंचल ।
प्रशान्त दीक्षित
सीखने योग्य
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