🥗🎊🍃गुलदस्ता🍃🎊🥗
तुझसे मिलकर ये मैंने जाना है
जिन्दगी प्यार का तराना है ,
तुम भले ना कहो हमें अपना
हमने तो यार तुझे माना है ,
तुम मिले राह में खुदा जैसे
पा के तुझको न दूर जाना है ,
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
हमारा वक्त तो गया तुम्हारा बाकी है
मगर तू आज भी मेरी पुरानी साकी है
तुम्हारे हाथ का वो जाम याद है मुझको
उस ही जाम की खुमारी अभी तो बाकी है ,
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
हठ कर बैठा योग मेरा अरु
छीन लिया मुह से हाला
सहमा सहमा पहले से था
तड़प उठा पीने वाला ,
योग देख साकीबाला ने
चरण पखारे और कहा
हठ केवल मठ मे चलता है
ये है मेरी मधुशाला ,
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
मिलके तुझसे ये मौसम सुहावन लगे,
चंदा बादल में जैसे लुभावन लगे,
झूमता मन मयूरा होके मस्त मगन,
तुझ संग धूप सुनहरी भी सावन लगे ,
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
रोज कहता हूँ न जाऊँगा कभी उनके घर,
रोज उस कुचे में इक काम निकल आता है ,
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
रूखसत के वाकिआत का
इतना तो होश है,
देखा किये हम उनको जहाँ
तक नजर गई ,
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
बन के भिखारी खड़ा है जो भी ,
कुछ भी दे दे और ये सोच
कल उसकी दहलीज पे तू हो ,
ऐसा भी हो सकता है ,
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
गलियों की उदासी पूछती है
घर का सन्नाटा कहता है
इस शहर का हर रहने वाला
क्यूँ दूसरे शहर में रहता है ,
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
पहले जमीं बंटी फिर घर भी बंट गया
इन्सान अपने आप में कितना सिमट गया ,
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
जब तक है डोर हाथ में तब तक का खेल है
देखी तो होगी तुमने पतंगे कटी हुई,
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
लोग जिस हाल में मरने की
दुआ करते हैं
मैंने उस हाल में जीने की
क़सम खाई है..✍🏼
संकलन
🥗🍃राकेश कुमार मिश्रा🍃🥗
तुझसे मिलकर ये मैंने जाना है
जिन्दगी प्यार का तराना है ,
तुम भले ना कहो हमें अपना
हमने तो यार तुझे माना है ,
तुम मिले राह में खुदा जैसे
पा के तुझको न दूर जाना है ,
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
हमारा वक्त तो गया तुम्हारा बाकी है
मगर तू आज भी मेरी पुरानी साकी है
तुम्हारे हाथ का वो जाम याद है मुझको
उस ही जाम की खुमारी अभी तो बाकी है ,
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
हठ कर बैठा योग मेरा अरु
छीन लिया मुह से हाला
सहमा सहमा पहले से था
तड़प उठा पीने वाला ,
योग देख साकीबाला ने
चरण पखारे और कहा
हठ केवल मठ मे चलता है
ये है मेरी मधुशाला ,
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
मिलके तुझसे ये मौसम सुहावन लगे,
चंदा बादल में जैसे लुभावन लगे,
झूमता मन मयूरा होके मस्त मगन,
तुझ संग धूप सुनहरी भी सावन लगे ,
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
रोज कहता हूँ न जाऊँगा कभी उनके घर,
रोज उस कुचे में इक काम निकल आता है ,
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
रूखसत के वाकिआत का
इतना तो होश है,
देखा किये हम उनको जहाँ
तक नजर गई ,
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
बन के भिखारी खड़ा है जो भी ,
कुछ भी दे दे और ये सोच
कल उसकी दहलीज पे तू हो ,
ऐसा भी हो सकता है ,
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
गलियों की उदासी पूछती है
घर का सन्नाटा कहता है
इस शहर का हर रहने वाला
क्यूँ दूसरे शहर में रहता है ,
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
पहले जमीं बंटी फिर घर भी बंट गया
इन्सान अपने आप में कितना सिमट गया ,
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
जब तक है डोर हाथ में तब तक का खेल है
देखी तो होगी तुमने पतंगे कटी हुई,
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
लोग जिस हाल में मरने की
दुआ करते हैं
मैंने उस हाल में जीने की
क़सम खाई है..✍🏼
संकलन
🥗🍃राकेश कुमार मिश्रा🍃🥗
0 comments:
Post a Comment