निराशाओ के बदले दायरे की इक सुबह दे दी
लगाए आस थे जो उनको हँसने की वजह दे दी
अँधेरे से दिए ने क्या जुगलबंदी बनाई है
मिटाया दूर तक पर अपने पहलू में जगह दे दी
कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह "आग"
9675426080
लगाए आस थे जो उनको हँसने की वजह दे दी
अँधेरे से दिए ने क्या जुगलबंदी बनाई है
मिटाया दूर तक पर अपने पहलू में जगह दे दी
कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह "आग"
9675426080
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