अब मुहब्बत की बेकद्रियाँ हो गयीं
सात जन्मों की बातें कहाँ खो गयीं
मीठी बातों के जालों से निकले जो हम
खारी बूंदें नयन की, भरम धो गयीं
हमने दिल को जलाया दिए की तरह
चाहतों का उजाला नहीँ मिल सका
सींचते रह गए ख्वाब के बाग को
एक भी गुल खुशी का नहीँ खिल सका
पहले दिल को नयी राह पर ले गए
सूर था मैं मेरी आँख वो बन गए
हर रुकावट का हाल-ए-बया कर दिया
शूल बनकर वही सामने तन गए
उनके सीने में पत्थर का घर था बना
जिसका दरवाजा मुझसे नहीँ हिल सका
सींचते रह गए ख्वाब के बाग को
एक भी गुल खुशी का नहीँ खिल सका
हम तो पहले से थे चोट खाए हुए
तुमने मरहम मुझे फ़िर लगाया था क्यों
तुमको हमदर्दियाँ मुझसे ना थीं सनम
फ़िर ये रिश्ता अनोखा निभाया था क्यों
गैर थे तुम मगर हमने अपना कहा
ज़ख्म गहरा हुआ है, नहीँ सिल सका
सींचते रह गए ख्वाब के बाग को
एक भी गुल खुशी का नहीँ खिल सका
हमने दिल को जलाया ................
कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह "आग"
9675426080
9897673505
सात जन्मों की बातें कहाँ खो गयीं
मीठी बातों के जालों से निकले जो हम
खारी बूंदें नयन की, भरम धो गयीं
हमने दिल को जलाया दिए की तरह
चाहतों का उजाला नहीँ मिल सका
सींचते रह गए ख्वाब के बाग को
एक भी गुल खुशी का नहीँ खिल सका
पहले दिल को नयी राह पर ले गए
सूर था मैं मेरी आँख वो बन गए
हर रुकावट का हाल-ए-बया कर दिया
शूल बनकर वही सामने तन गए
उनके सीने में पत्थर का घर था बना
जिसका दरवाजा मुझसे नहीँ हिल सका
सींचते रह गए ख्वाब के बाग को
एक भी गुल खुशी का नहीँ खिल सका
हम तो पहले से थे चोट खाए हुए
तुमने मरहम मुझे फ़िर लगाया था क्यों
तुमको हमदर्दियाँ मुझसे ना थीं सनम
फ़िर ये रिश्ता अनोखा निभाया था क्यों
गैर थे तुम मगर हमने अपना कहा
ज़ख्म गहरा हुआ है, नहीँ सिल सका
सींचते रह गए ख्वाब के बाग को
एक भी गुल खुशी का नहीँ खिल सका
हमने दिल को जलाया ................
कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह "आग"
9675426080
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