हिंदी साहित्य का आधुनिक काल भारत के इतिहास के बदलते हुए स्वरूप से प्रभावित था। स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीयता की भावना का प्रभाव साहित्य में भी आया। भारत में औद्योगीकरण का प्रारंभ होने लगा था। आवागमन के साधनों का विकास हुआ। अंग्रेजी और पाश्चात्य शिक्षा का प्रभाव बढा और जीवन में बदलाव आने लगा।

Monday, 31 July 2017

अमरजीत यादव 'अमर'

नमस्कार मित्रों
आज पहली बार कुण्डलियाँ पोस्ट कर रहा हूँ ।
भाभी जब रखने लगी,घर मे सबका ध्यान
परिवर्तन यह देख कर , हुये सभी हैरान 
हुये सभी हैरान , बहुरिया करती सेवा
सासू अम्मा रोज , ठूँसती मिश्री मेवा
सबको कर खुशहल ,मिलेगी हमको चाभी
मन मे यही विचार , कर रहीं पुष्पा भाभी
©सर्वाधिकार सुरक्षित
अमरजीत यादव 'अमर'
(हास्य व्यंग)
01-08-2017
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अविनाश सिंह अमेंठिया


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Best Gazal of this year 2017

बड़ा वीरान मौसम है कभी मिलने चले आओ
हर इक जानिब तेरा ग़म है कभी मिलने चले आओ !
हमारा दिल किसी गहरी जुदाई के भँवर में है
हमारी आँख भी नम है कभी मिलने चले आओ !
मेरे हमराह गरचे दूर तक लोगों की रौनक़ है
मगर जैसे कोई कम है कभी मिलने चले आओ
अँधेरी रात की गहरी ख़मोशी और तन्हा दिल
दिए की लौ भी मद्धम है कभी मिलने चले आओ !
हवाओं और फूलों की नई ख़ुशबू बताती है
तेरे आने का मौसम है कभी मिलने चले आओ !
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बालकवि अर्पित

चूँ चूँ करके रोज बुलाती।
जाते ही झट से उड जाती।
रँग बिरँगे पँखोँ वाली,
डरते डरते नभ पर जाती॥
आकरके धरती पर उठना,चलना,मुडना सीख रही।
एक नई चिडिया है धीरे धीरे उडना सीख रही॥
असफल रहती और गिर जाती।
किन्तु आसमाँ पर फिर जाती॥
उठ उठ करके जब वह गिरती,
ऐसा लगता वह मर जाती॥
बहुत दूर जाने के खातिर, सब से बिछडना सीख रही।
एक नई चिडिया.....
-बालकवि अर्पित
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शुभम शुक्ल

इतने काबिश हैं अँधेरे घर में,
रोशनी पूछ-पूछ आती है।
गम के पहरे ही हम पे इतने हैं,
हर खुशी पूछ-पूछ आते हैं।
-शुभम शुक्ल
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अब्दुल (दीवाने कलाम)

वो मेरे घर नहीं आती, मैं उसके घर नहीं जाता
इस कदर मेरा व उसका, प्यार मर नही जाता
होंगी मशरूफ,मेरी तरह वो भी यारो,इसीलिये
शायद आजकल उसका,कोई खबर नही आता
अब्दुल (दीवाने कलाम)
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शुभम शुक्ल

नमन्
सूर्यवंशधर पुरुषोत्तम नरोवरम्,
अवध के प्राण प्रभु राम जी चले गये।
मुरली मनोहर गोवर्धनधारी प्रभु,
मोहन मुरारी घनश्याम जी चले गये।
भगत, आजाद, असफाक, बिस्मिल आदि
भारत को करके सलाम जी चले गये।
सत्ताइस जुलाई दो हजार पंद्रह के दिन,
देशप्रिय अब्दुल कलाम जी चले गये।
-शुभम शुक्ल
8127089997
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Thursday, 20 July 2017

महशर अजनवी"मिजाज"इलाहाबादी

उनको बशर की सफ में देखने वालों
ये तो बताओ उनसा कौन बशर हुआ
महशर अजनवी"मिजाज"इलाहाबादी
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New shayri by Kavi Nadeem Jagdishpuri

आसमा में चाँद सितारे जड़े लगते हैं
हर मोड़ पर वो मुझे खड़े लगते हैं
इक अजब दास्ताँ है मेरे साथ यारों
दो तीन साल मुझसे वो बड़े लगते हैं

   कवि नदीम जगदीशपुरी



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Wednesday, 19 July 2017

मध्यम

कुछ बातों को अफ़साना ही रहने दो।
दीवानों को दीवाना ही रहने दो।।
सजदा मत करवाओ अपनी पलकों को।
इन आँखों को मैख़ाना ही रहने दो।।
ख़ामोशी भी एक सदा के जैसी है।
वीरानों को वीराना ही रहने दो।।
"मध्यम"


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Monday, 3 July 2017

Sahitya kavi Sangam kavygosti










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Sunday, 2 July 2017

कवि नदीम जगदीशपुरी

चाहत का दिया दिल में जलाऊंगा मै कैसे
यादों को तेरे यार भुलाऊगां मै कैसे
जीना हुवा दुश्वार तेरे प्यार मैं नदीम
हमको बताओ यार तुम्हे मनाऊंगा मै कैसे
    कवि नदीम जगदीशपुरी
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love shayri by Nadeem

उसने दिल को न जाने क्या कर दिया
निगाहों से सब कुछ बयाँ कर दिया
हाँ पूंछा जो हमने जबाब इसका
झुककर निगाहों को हाँ कर दिया 
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New love Shayari By Nadeem

तुम्हारे सामने मै आज ये इकरार करता हूँ
मै तुमपे जान देता हूँ तुम्ही प्यार करता हूँ
कभी तो आओगी बनकर बहारे ज़िन्दगी मेरी
मैं तुम्हे अपना बनाने की दुवा सौ बार करता हु 
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Kavi Nadeem Jagdishpuri best Muktak of 2017 ,अल्लाह भी लिखा है तुझे राम लिखा है

यादों को तेरे मैंने सुबहो शाम लिखा है
बरसों के बाद गीत तेरे नाम लिखा है
ऐ जाने गज़ल मैंने तेरे प्यार में अक्सर
अल्लाह भी लिखा है तुझे राम लिखा है
 Kavi Nadeem Jagdishpuri
     8795124923

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Saturday, 1 July 2017

M Shaad Siddiqui


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शुभम शुक्ल

जहालत के अंधेरे भी कभी के छँट गए होते।
अगर हम छोड़कर राहों को इनकी हट गए होते।
मैं पंछी हूँ मुझे आकाश तक उड़ना ही उड़ना है,
अगर हम थक गए होते तो अब तक मिट गए होते।
-शुभम शुक्ल 
8127089997
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वीणा त्रिवेदी 🌹माधुरी 🌹

सार गर्वित हुई जब प्रणय साधना
वासना का हृदय से दमन हो गया
शेष अवशेष कोई न मन कामना
प्रेम अम्रत का अब आचमन हो गया
वीणा त्रिवेदी 🌹माधुरी 













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Kavi Durgesh Dubey


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दिनेश सैनी (अकेला)

हमने हैं वो लोग भी देखे जिन्हे इश्क से मतलब कुछ भी नही है,,
जिस्म औ दौलत के पीछे फिरते दिल से मतलब कुछ भी नही है ।।


बड़े सलीके से वो खेलते हर किसी के जज्बातों से,,
मज़ा आए जो खेल मे तो दूजे की पीर से मतलब कुछ भी नही है ।।


बातें वफाओं और जफाओं की उनको रास नही आती है,,
मतलब पुरा हुआ तो फिर उस इंसा से मतलब कुछ भी नही है ।।


मिला है हमको बड़ा तर्जुबा उन खुदर्गजों से मिलकर,,
खुशियों मे होंगे साथ सभी गम मे 'अकेले' से मतलब कुछ भी नही है ।।


दिनेश सैनी (अकेला)
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जितेन्द्र चौहान "दिव्य" मुक्तक

मुक्तक~
1222,1222,1222,1222

मिले मुझको अगर दाता,उसे भी छोड़ दूगा मै|
"तेरी"मुस्कान की खातिर,हवायें मोड़ दूगा मैं||
सजा ले हाथ पर अपने,हिना से  नाम  तू मेरा,
अवारा ना समझ मुझको,किनारा जोड़ दूगा मैं||

जितेन्द्र चौहान "दिव्य"                        
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साहि

सज गया है आज देखो, भाव से जनचेतना,
रोटी की कीमत समझना, मनुज की संवेदना,
जिनको देखो कष्ट में तुम देना सर्वदा,
इस गरीबी को मिटाओ, और हरो जनवेदना।
    🙏🏻साहिल🌺
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अनुभा मुंजारे

🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾

               ' किसान '
              ****

मेरा भारत देश महान है
देश की ताकत किसान है
पर भारत के किसानों की
दशा पर मैं अक्सर सोचा करती हूँ
उनकी पीड़ा को महसूस कर
मन ही मन रोया करती हूँ
सारे देश के पेट को
जो है भरता
वो ही क्यों
आत्महत्या करके है मरता
सबकी अपनी मांगें हैं
सबकी अपनी जरूरत
फिर क्यों नहीं
किसान की जिन्दगी
हो सकती है खूबसूरत
गर्मी , ठण्ड और बरसात
सब में वो मेहनत करता है
फिर भी अपनी दैनिक
आवश्यकताओं को पूरा
करने को तरसता है
लाचारी और मज़बूरी
उसके जीवन के अंग हैं
आँसू और दर्द ही
हमेशा उसके संग हैं
अपनी फसल का उचित मूल्य
मांगने जब वो सड़क पर आता है
तब
बेरहम प्रशासन की
गोली से भुंज जाता है
जनता के चुने नुमाइंदे
फिर दिखावा करते हैं
दिल में कोई टीस नहीं
बस
घड़ियाली आँसू बहाया करते हैं
ऐ सत्ता के महाराजा
तुम इतना जान लेना
किसानों के अगर दर्द को
न समझे तो
जंगल की ओर चले जाना
लोकतंत्र में अगर तुम
तानाशाही दिखाओगे
तो एक दिन वो आयेगा

जब तुम मिटटी में मिल जाओगे ...
सुना तुमने ...

तुम , मिटटी में मिल जाओगे ...


अनुभा मुंजारे ......... !!!

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कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह "आग"

अब मुहब्बत की बेकद्रियाँ हो गयीं
सात जन्मों की बातें कहाँ खो गयीं
मीठी बातों के जालों से निकले जो हम
खारी बूंदें नयन की, भरम धो गयीं

हमने दिल को जलाया दिए की तरह
चाहतों का उजाला नहीँ मिल सका
सींचते रह गए ख्वाब के बाग को
एक भी गुल खुशी का नहीँ खिल सका

पहले दिल को नयी राह पर ले गए
सूर था मैं मेरी आँख वो बन गए
हर रुकावट का हाल-ए-बया कर दिया
शूल बनकर वही सामने तन गए

उनके सीने में पत्थर का घर था बना
जिसका दरवाजा मुझसे नहीँ हिल सका
सींचते रह गए ख्वाब के बाग को
एक भी गुल खुशी का नहीँ खिल सका

हम तो पहले से थे चोट खाए हुए
तुमने मरहम मुझे फ़िर लगाया था क्यों
तुमको हमदर्दियाँ मुझसे ना थीं सनम
फ़िर ये रिश्ता अनोखा निभाया था क्यों

गैर थे तुम मगर हमने अपना कहा
ज़ख्म गहरा हुआ है, नहीँ सिल सका
सींचते रह गए ख्वाब के बाग को
एक भी गुल खुशी का नहीँ खिल सका
हमने दिल को जलाया ................

कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह "आग"
9675426080
9897673505
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अनन्तराम चौबे

मौसम बरसात का

मौसम बरसात का
ये कैसा हो गया है
नीला आकाश भी
बादलो से ढक गया है।

गर्मी के वाद मौसम
धीरे धीरे बदल गया है
वरसात के मौसम का
आगमन जो हो गया है ।

गर्मी के पसीने से अभी
कपडे गीले होते थे
अब पानी की फौहारो
से गीले हो रहे है ।

वरसात की फौहार
आती है चली जाती है
कभी ठंडक कभी
थोडी गर्मी लगती है
गीला करके सुकून देती है ।

आकाश मे बादलो की
भाग दौड कभी धूप
कभी छाँव कर देती है
कभी धूम धडाके से
वारिश होने लगती है ।

मौसम वरसात का है
मिट्टी की खुशबू भी
सौदी सौदी लगती है
खिडकी खोल दो
हवा भी ठंडी लगती है ।

हर मौसम की अपनी
अपनी तासीर होती है
जो मौसम के बदलने
हमेशा अच्छी लगती है ।

श्रंगार करो चाहे जितना
बरसात से धुल जाता है
बनावट चाहे जितनी करो
सच सामने आ जाता है ।
   
       अनन्तराम चौबे
      ग्वारीघाट जबलपुर
       मो 9770499027
           597/157
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राकेश कुमार मिश्रा

🥗🎊🍃गुलदस्ता🍃🎊🥗

तुझसे मिलकर ये मैंने जाना है
जिन्दगी   प्यार  का  तराना है ,
तुम भले ना कहो हमें अपना
हमने  तो  यार तुझे माना है ,
तुम  मिले  राह में खुदा जैसे
पा के तुझको न दूर जाना है ,
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
हमारा वक्त तो गया तुम्हारा बाकी है
मगर तू आज भी मेरी पुरानी साकी है
तुम्हारे हाथ का वो जाम याद है मुझको
उस ही जाम की खुमारी अभी तो बाकी है ,
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
हठ कर बैठा योग मेरा अरु
छीन लिया मुह से हाला
सहमा सहमा पहले से था
तड़प  उठा  पीने  वाला ,
योग देख साकीबाला ने
चरण पखारे  और कहा
हठ  केवल  मठ मे चलता है
ये  है मेरी  मधुशाला ,
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
मिलके तुझसे ये मौसम सुहावन लगे,
चंदा बादल में जैसे  लुभावन  लगे,
झूमता मन मयूरा होके मस्त मगन,
तुझ संग धूप सुनहरी भी सावन लगे ,
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
रोज कहता हूँ न जाऊँगा कभी उनके घर,
रोज उस कुचे में इक काम निकल आता है ,
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
रूखसत के वाकिआत का
इतना तो होश है,
देखा किये हम उनको जहाँ
तक नजर गई ,
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
बन के भिखारी खड़ा है जो भी ,
कुछ भी दे दे और ये सोच
कल उसकी दहलीज पे तू हो ,
ऐसा भी हो सकता है ,
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
गलियों की उदासी पूछती है
घर का सन्नाटा कहता है
इस शहर का हर रहने वाला
क्यूँ दूसरे शहर में रहता है ,
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
पहले जमीं बंटी फिर घर भी बंट गया
इन्सान अपने आप में कितना सिमट गया ,
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
जब तक है डोर हाथ में तब तक का खेल है
देखी तो होगी तुमने पतंगे कटी हुई,
🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
लोग जिस हाल में मरने की
दुआ करते हैं
मैंने उस हाल में जीने की
क़सम खाई है..✍🏼
  संकलन
🥗🍃राकेश कुमार मिश्रा🍃🥗
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Bala prasad bala new video of 2017

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डॉ.सरला सिंह

सुन समय ।
               ..............
ठहर तो जरा ,भाग ना इस कदर,
देख मुझको तू मेरे सपने संजोने तो दे।
तेरी मुझको जरुरत बहुत है अभी,
चालअपनी तू थोड़ा  कम कर तो ले।
जब तू चल रहा था मेरे पीछे पीछे ,
मुझे ना ध्यान था,तेरी कदर कर तो लें।
आज मैं हूँ शिथिल चाल तेरी है बढ़ी ,
होता ही नहीं तेरे संग संग चल तो लें।
ठहर तो जरा , भाग ना इस कदर ,
देख मुझको तू मेरे सपने संजोने तो दे ।
आ रहा देख पतझड़ दिल दुख रहा,
क्या करें अब कि ये सपने सँवर तो ले ।
ऋतुचक्र चल रहा ना रुकेगा कभी ,
फिर भी चाहत कि ख्वाब पूरे हो तो लें।
रंग पड़ने लगे है हाय फीके सखी ,
पर तमन्ना सातरंगों से नभ को रंग तो लें।
ठहर तो जरा ,भाग ना इस कदर ,
देख मुझको तू मेरे सपने संजोने तो दे ।।
               डॉ.सरला सिंह ।
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ओम अग्रवाल (बबुआ)

आज मेरे जन्मदिन पर विशेष निवेदन सहित भोर का नमन
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷

हे मात-पिता हे गुरुवर प्यारे, इतनी आप कृपा करना
शीश नमू जब भोर आपको, सिर पर हाँथ रखा करना

भानु शशी हे व्योम धरा हे, अनल पवन हे जल सारे
हे जीव चराचर तरु-तरुवर, हे अम्बर के सब प्रिय तारे
भोर नमन जब करूँ आपको, इतनी आप कृपा करना
नेह सहित हे प्रभुवर मेरे, सिर पर हाँथ रखा करना

करजोड़ करूँ मै विनती प्रियवर, अर्ज मेरी स्वीकार करें
परि-परिजन अरि-मित्र परमप्रिय, सर्व सुखी संसार करें
स्वीकार नमन हे प्रियवर मेरे, नित नित आप किया करना
शीश नमू जब भोर आपको, सिर पर हाँथ रखा करना

🌹ओम अग्रवाल (बबुआ)
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राकेश कुमार मिश्रा

🏵🍃दौरे-ए-गजल🍃🏵

फूल से हाथों में पत्थर देखकर
रो पड़ा मैं ऐसा मन्जर देखकर

मौसमो से मिल के की हैं साजिशें
आँधियो ने मेरा छप्पर देखकर

मेरे चेहरे पर उदासी है बहुत
उसकी यादों का ये लश्कर देखकर

हिचकियों से रो रही थी बस्तियां
नोके नेजा* पे वो इक सर देखकर

ख़ौफ़ सा तारी है "राकेश"
हर तरफ
शहर में बिखरा हुआ डर
देखकर...✍🏻
*भाला
🏵राकेश कुमार मिश्रा🏵
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new

⁠⁠⁠⁠⁠🌺अपनी कलम से ✍
    महके मुझे तेरी आँचल
पता चल जाये तेरी छागल
   कब तू दुर रहे मुझसे
याद दिलाती तेरी आँचल ।
कभी रातों का नशा ,
   कभी दिन मे वफा,
तू चली कब आये ,
    ये न कभी मुझको पता ,
जहाँ रहूँ वहाँ पे हूँ मै  पागल ।
करती निगाहें तेरी हर बार मुझे घायल ।
   कही तू हो मेरे पास
महके मुझे तेरी आंचल ।
      प्रशान्त दीक्षित
सीखने योग्य
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सुनील साहू

सरकार रोज लाये नई कर,
जनता चुकाते चूकते जा रहा मर।

नेता  कैसे समझे आम जन का दर्द,
उसने तो कभी चुकाया नहीं कोई कर।

किसान का नीलाम हो रहा घर,
फिर भी चुका न पा रहा कर।

दो वक्त की रोटी के खातिर किसान,
खा रहा दर दर की ठोकर।

अब शासन पूछती है ये सवाल,
किसान क्यों जा रहा है रोज मर।

रोज बढ़ रहा नए नए कर,
ऐसे में कैसे न जाये किसान मर।।

                        ✍🏾✍🏾सुनील साहू🙏🏾
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हमीद कानपुरी

                        ग़ज़ल
**********
कहीं  राम  बेचे,  कहीं  काम  बेचे
सियासत ने जमकर बड़े नाम बेचे
**********
सियासत है की और इल्जाम बेचे
मेरे  ख्वाब  उसने  बिना दाम बेचे
**********
बड़े  मंच  उसने   सजाये  बराबर,
शिकायत के तोहफे सरेआम बेचे।
**********
नहीं मानता कुछमुहब्बत वफा को
मिलें  दाम उसको तो हर गाम बेचे
**********
पुराने  थे  मँहगे  नहीं  बेच  पाया,
गया  मैक़दे  में   नये   जाम  बेचे।
**********
सभी एक ताजिर  मुझे  जानते  हैं,
सजाकर दुकां में  जो आराम बेचे।
**********
हमीद कानपुरी
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कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह "आग"

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कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह "आग"

निराशाओ के बदले दायरे की इक सुबह दे दी
लगाए आस थे जो उनको हँसने की वजह दे दी
अँधेरे से दिए ने क्या जुगलबंदी बनाई है
मिटाया दूर तक पर अपने पहलू में जगह दे दी

कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह "आग"
9675426080
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dr kumar vishwas best peom of 2017

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