जनाजे की आङ में.....
जनाजे की आङ में,निकली एक बारात थी !
ढोल भी थे,और सौगात भी !!
अब,छोड़ो भी बात नवाब की ।
ये काज नहीं,विदाई पार्टी थी जनाब की !!
बुरा मालूम होता है कहने में,लेकिन बात है खरी ।
जीते जी,तो नसीब न हुआ शिफ़ाखाना,शायद मरने पर मिले बहिश्त-ए-बरी !!
अजीब हालत होगी उनकी(मरने वाले की),रब से मुलाकात की!
क्या बया करूँ मैं,अजी उन हालात की!!
और वहाँ,ग़म मिटाने वालों के लिए,कमी नहीं थी खालिस शराब की।
क्योंकि,ख़र्च नहीं,आज विदाई पार्टी थी जनाब की!!
हाँ कुछ मसगुल थे रोने में,
आँसू बहा रहे थे एक कोने में,
तब हमने पुछा,क्या आपको रंज है। इनके मरने का !
जवाब मिला,नहीं!हमें तो बस गिला है,जलेबीयाँ ठंडी और लड्डू के साईज कम करने का ।
तो इस कदर रोनक थी शब-ए-महताब की ।
हाँ,ये काज नहीं,आज विदाई पार्टी थी जनाब की !!
(तभी ऊपर से आवाज़ आई)
क्या आज जले हैं?,तेरे घर में घी के दीए ।
तुझे नवाजा था मैंने,क्या इसीलिए ?
तो फ़िर क्या ज़रूरत थी,ये सब करने की ।
क्या सच में ख़ुशी है,तुझे मेरे मरने की!!
ये देख के "दीप",हालात ख़राब हो गई नवाब की !
अब हमें भी लगता है,काज नहीं,ये विदाई पार्टी थी जनाब की!!
"दीप"(दीपक कुमार नौखवाल)
जनाजा-अर्थी
शिफ़ाखाना-हस्पताल
बहिश्त-ए-बरी=स्वर्ग
रंज-दुख
शब-ए-महताब=चाँदनी रात
नवाजा-पाला
रब-ईश्वर
जनाजे की आङ में,निकली एक बारात थी !
ढोल भी थे,और सौगात भी !!
अब,छोड़ो भी बात नवाब की ।
ये काज नहीं,विदाई पार्टी थी जनाब की !!
बुरा मालूम होता है कहने में,लेकिन बात है खरी ।
जीते जी,तो नसीब न हुआ शिफ़ाखाना,शायद मरने पर मिले बहिश्त-ए-बरी !!
अजीब हालत होगी उनकी(मरने वाले की),रब से मुलाकात की!
क्या बया करूँ मैं,अजी उन हालात की!!
और वहाँ,ग़म मिटाने वालों के लिए,कमी नहीं थी खालिस शराब की।
क्योंकि,ख़र्च नहीं,आज विदाई पार्टी थी जनाब की!!
हाँ कुछ मसगुल थे रोने में,
आँसू बहा रहे थे एक कोने में,
तब हमने पुछा,क्या आपको रंज है। इनके मरने का !
जवाब मिला,नहीं!हमें तो बस गिला है,जलेबीयाँ ठंडी और लड्डू के साईज कम करने का ।
तो इस कदर रोनक थी शब-ए-महताब की ।
हाँ,ये काज नहीं,आज विदाई पार्टी थी जनाब की !!
(तभी ऊपर से आवाज़ आई)
क्या आज जले हैं?,तेरे घर में घी के दीए ।
तुझे नवाजा था मैंने,क्या इसीलिए ?
तो फ़िर क्या ज़रूरत थी,ये सब करने की ।
क्या सच में ख़ुशी है,तुझे मेरे मरने की!!
ये देख के "दीप",हालात ख़राब हो गई नवाब की !
अब हमें भी लगता है,काज नहीं,ये विदाई पार्टी थी जनाब की!!
"दीप"(दीपक कुमार नौखवाल)
जनाजा-अर्थी
शिफ़ाखाना-हस्पताल
बहिश्त-ए-बरी=स्वर्ग
रंज-दुख
शब-ए-महताब=चाँदनी रात
नवाजा-पाला
रब-ईश्वर
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