गर बुझना लिखा हो दीये की क़िस्मत में,
तो फिर हवाओं की ज़रूरत नहीं होती...
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क्योंकि जब वक़्त सुनाता है फैसला अपना,
तब उसे गवाहों की ज़रूरत नहीं होती.......
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तो फिर हवाओं की ज़रूरत नहीं होती...
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क्योंकि जब वक़्त सुनाता है फैसला अपना,
तब उसे गवाहों की ज़रूरत नहीं होती.......

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