तुमको देख देखकर साथी,दिल तन्हा हो जाता है
धरती सा सब कुछ सहकर के, ये धरती सा हो जाता है
उसके बिखरे केशो से,भ्रम बादल का हो जाता है
कारे कारे बदरा से,दिल गुलाब हो जाता है
कैसे तुमको प्रीत बताऊँ, कैसे तुमको रीत बताऊँ
तुम बिन साथी जीते जी,तन मुर्दा सा हो जाता है
काले काले मेघो के बिच, ये चौदस का चाँद सुनो
सरमाया कुछ सकुचाया सा, ये पागल सा चाँद सुनों
कभी कभी ये चाँद बाबरा बदली से झांके
जैसे मानो वो मृगनयनी,तिरछे करके नैन ताके
मन मयूर सा नाच उठे है,देख घटा तेरे केसों की
चातक होकर राह देखता ,मन सागर जैसे इन नयनों की
एकपल नजर नही हटती है,कैसा ये आकर्षण है
सुखी धरती पर मानो,होता हो मृदु वर्षण है
रचनाकर - ऋषभ तोमर
धरती सा सब कुछ सहकर के, ये धरती सा हो जाता है
उसके बिखरे केशो से,भ्रम बादल का हो जाता है
कारे कारे बदरा से,दिल गुलाब हो जाता है
कैसे तुमको प्रीत बताऊँ, कैसे तुमको रीत बताऊँ
तुम बिन साथी जीते जी,तन मुर्दा सा हो जाता है
काले काले मेघो के बिच, ये चौदस का चाँद सुनो
सरमाया कुछ सकुचाया सा, ये पागल सा चाँद सुनों
कभी कभी ये चाँद बाबरा बदली से झांके
जैसे मानो वो मृगनयनी,तिरछे करके नैन ताके
मन मयूर सा नाच उठे है,देख घटा तेरे केसों की
चातक होकर राह देखता ,मन सागर जैसे इन नयनों की
एकपल नजर नही हटती है,कैसा ये आकर्षण है
सुखी धरती पर मानो,होता हो मृदु वर्षण है
रचनाकर - ऋषभ तोमर