जो कुछ भी धड़कता है वो भी कब तक,
तमाम उम्र जो कमाया, खर्च ही कहां हुआ
ऊपरवाले से इल्तज़ा है -
तिजोरी का ढेर बहुत है, ऐसा न हो गवां ही दूँ,
ऊपर आकर जो पसार दूँ, तुम से भी मैं यही सुनूं -
मैं ईश्वर हूँ ! मानने को तैयार नहीं की -
नीचे चोर तुमको मिले नहीं !?!
तमाम उम्र जो कमाया, खर्च ही कहां हुआ
ऊपरवाले से इल्तज़ा है -
तिजोरी का ढेर बहुत है, ऐसा न हो गवां ही दूँ,
ऊपर आकर जो पसार दूँ, तुम से भी मैं यही सुनूं -
मैं ईश्वर हूँ ! मानने को तैयार नहीं की -
नीचे चोर तुमको मिले नहीं !?!
जो कुछ भी धड़कता है वो भी कब तक ।
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