हमारी जान बिस्मिल्ला की शहनाई के जैसी हो।
मगर प्यासा हूँ अब सावन में पुरवाई के जैसी हो।
हमारा प्यार बढ़ता जा रहा जैसे के जनसंख्या,
मगर मै क्या करूँ तुम भी तो महँगाई के जैसी हो।
-शुभम शुक्ल
मगर प्यासा हूँ अब सावन में पुरवाई के जैसी हो।
हमारा प्यार बढ़ता जा रहा जैसे के जनसंख्या,
मगर मै क्या करूँ तुम भी तो महँगाई के जैसी हो।
-शुभम शुक्ल
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