मुस्कराकर पास मेरे बैठ गयी आकर,
चन्दन बाग की फुलझड़ी लगने लगी।
सावन की बूंदों ने जो अंग तेरा भिगो दिया,
सागर पार की जलपरी दिखने लगी।।
साथ साथ पथ पे साथी तरह चल दिये ,
आज अपने दोस्तो की नींद उड़ने लगी।
बातो ही बातों में उसने अपना बना लिया,
चक्रवर्ती के मन मन्दिर बसने लगी।।
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हिन्दी कवि अंकित चक़वर्ती
8954702290
चन्दन बाग की फुलझड़ी लगने लगी।
सावन की बूंदों ने जो अंग तेरा भिगो दिया,
सागर पार की जलपरी दिखने लगी।।
साथ साथ पथ पे साथी तरह चल दिये ,
आज अपने दोस्तो की नींद उड़ने लगी।
बातो ही बातों में उसने अपना बना लिया,
चक्रवर्ती के मन मन्दिर बसने लगी।।











हिन्दी कवि अंकित चक़वर्ती
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