हिंदी साहित्य का आधुनिक काल भारत के इतिहास के बदलते हुए स्वरूप से प्रभावित था। स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीयता की भावना का प्रभाव साहित्य में भी आया। भारत में औद्योगीकरण का प्रारंभ होने लगा था। आवागमन के साधनों का विकास हुआ। अंग्रेजी और पाश्चात्य शिक्षा का प्रभाव बढा और जीवन में बदलाव आने लगा।

Tuesday, 29 May 2018

Kavi Nadeem Jagdishpuri

मोहब्बत की नई  राग देंगे
सर पर तुम्हारे ताज देंगे
हाथों में रख दो गर हाथ तुम
कसम से उम्र भर साथ देंगे

     कवि नदीम जगदीशपुरी
          8795124923

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Sunday, 27 May 2018

Kavi Nadeem Jagdishpuri

मोहब्बत में औकात उसने की
दिल की बात उसने की
और क्या बताऊँ तुम्हें  यारों
हर बार सुरवात उसने की

  कवि नदीम जगदीशपुरी



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Saturday, 26 May 2018

Mohan Muntazir

मसरूफ़ियत से खुद को अकेला निकालकर
आओ कभी तो वक़्त ज़रा सा निकालकर
क्या थी कमी हमारी मुहब्बत में बेवफ़ा
हमने तो रख दिया था कलेजा निकालकर
मोहन मुन्तज़िर


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Saturday, 19 May 2018

कवि विजय कुमार राज

तुम्हारे बिन न जाने क्यों,ये मेरा दिल तड़पता है।
अगर तुम पास आ जाओ,मेरा मन-तन महकता हैं।
हमारा रिश्ता है कैसा मैं तुमसे कह नहीं सकता।
वहां अंगड़ाई ले लो तुम,यहां ये दिल बहकता है।
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NAZM on Najeeb JNU by Imran Pratapgarhi

कोई ला के दे दे मुझे लाल मेरा
एक नज़्म JNU के नजीब की मॉं के एहसासों की
••••••••••••••••••••••

सुना था कि बेहद सुनहरी है दिल्ली,
समंदर सी ख़ामोश गहरी है दिल्ली !
मगर एक मॉं की सदा सुन ना पाये,
तो लगता है गूँगी है बहरी है दिल्ली !!

वो ऑंखों में अश्कों का दरिया समेटे,
वो उम्मीद का इक नज़रिया समेटे !
यहॉं कह रही है वहॉं कह रही है
तडप करके ये एक मॉं कह रही है !

कोई पूँछता ही नहीं हाल मेरा.....!
कोई ला के दे दे मुझे लाल मेरा...!

उसे ले के वापस चली जाऊँगी मैं,
पलट कर कभी फिर नहीं आऊँगी मैं !
बुढापे का मेरे सहारा वही है,
वो बिछडा तो ज़िन्दा ही मर जाऊँगी मैं !

मेरी चीख़ और मेरी फ़रियाद कहना,
ये मोदी से इक मॉं की रूदाद कहना !

कहीं झूठ की शख़्सियत बह ना जाये,
ये नफ़रत की दीवार छत बह ना जाये !
है इक मॉं के अश्कों का सैलाब साहब,
कहीं आपकी सल्तनत बह ना जाये !!

वो है ज़िन्दगी भर की मेरी कमाई,
वही तो है सदियों का आमाल मेरा....!!

कोई ला के दे दे मुझे लाल मेरा


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Saturday, 12 May 2018

munawwar rana

इसी गली में वो भूखा किसान रहता है!
ये वो ज़मीन है जहाँ आसमान रहता है!!

मैं डर रहा हूँ हवा से ये पेड़ गिर न पड़े!
कि इस पे चिडियों का इक ख़ानदान रहता है!!

सड़क पे घूमते पागल की तरह दिल है मेरा!
हमेशा चोट का ताज़ा निशान रहता है !!

तुम्हारे ख़्वाबों से आँखें महकती रहती हैं!
तुम्हारी याद से दिल जाफ़रान रहता है !! (जाफ़रान = केसर )

हमें हरीफ़ों की तादाद क्यों बताते हो! ( हरीफ़ों की तादाद = साथीदारांची संख्या )
हमारे साथ भी बेटा जवान रहता है!!

सजाये जाते हैं मक़तल मेरे लिये ‘राना’! ( मक़तल = कत्तलखाने )
वतन में रोज़ मेरा इम्तहान रहता है!!
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मुनव्वर राणा

उन घरों में जहाँ मिट्टी के घड़े रहते हैं!
क़द में छोटे हों मगर लोग बड़े रहते हैं!!

जो भी दौलत थी वो बच्चों के हवाले कर दी!
जब तलक मैं नहीं बैठूँ ये खड़े रहते हैं !!

मैंने फल देख के इन्सानों को पहचाना है!
जो बहुत मीठे हों अंदर से सड़े रहते हैं!!

मुनव्वर राणा .

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Ghazals of Munawwar Rana |

हमारे कुछ गुनाहों की सज़ा भी साथ चलती है !
हम अब तन्हा नहीं चलते दवा भी साथ चलती है!! ( तन्हा=एकटे )

अभी ज़िन्दा है माँ मेरी मुझे कुछ हो नही सकता !
मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है!!

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Ghazals of Munawwar Rana

राना कभी शाहों की ग़ुलामी नहीं करता.........

हम दोनों में आँखें कोई गीली नहीं करता!
ग़म वो नहीं करता है तो मैं भी नहीं करता!!

मौक़ा तो कई बार मिला है मुझे लेकिन!
मैं उससे मुलाक़ात में जल्दी नहीं करता!!

वो मुझसे बिछड़ते हुए रोया नहीं वरना!
दो चार बरस और मैं शादी नहीं करता!!

वो मुझसे बिछड़ने को भी तैयार नहीं है!
लेकिन वो बुज़ुर्गों को ख़फ़ा भी नहीं करता!! ( बुज़ुर्गों = वडिलधारे, ख़फ़ा = नाराज )

ख़ुश रहता है वो अपनी ग़रीबी में हमेशा!
‘राना’ कभी शाहों की ग़ुलामी नहीं करता!! ( शाह = बादशाह )

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Happy Mothers Day

हमारे कुछ गुनाहों की सज़ा भी साथ चलती है
हम अब तन्हा नहीं चलते दवा भी साथ चलती है
अभी ज़िन्दा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा
मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है

Happy Mothers Day




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